भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(9 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 165 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div>
+
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div>
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
+
<!----BOX CONTENT STARTS------>
+
<table width=100% style="background:transparent">
+
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
+
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''नया राष्ट्रगीत<br>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[श्रीकान्त जोशी ]]</td>
+
</tr>
+
</table>
+
  
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
+
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
रोटी रोटी रोटी
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
+
रोटी रोटी रोटी।
+
जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
+
रोटी रोटी रोटी।
+
  
अपने घर में रखें करोड़ों बाहर दिखें भिखारी
+
<div style="text-align: center;">
सहसा नहीं समझ में आती ऐसों की मक्कारी
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
उधर करोड़ों जुटा न पाते तन पर एक लंगोटी
+
</div>
रोटी रोटी रोटी।
+
  
शोर बहुत है जन या हरिजन सब मरते हैं उनसे
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
महाजनियों की छुपी हुक़ूमत में सब झुलसे-झुलसे
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
चेहरे पर तह बेशरमी की कितनी मोटी-मोटी!
+
अपरिचित पास आओ
रोटी रोटी रोटी।
+
  
पैसों के बल टिका हुआ है प्रजातंत्र का खंबा
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
बिका हुआ ईश्वर रच सकता यह मनहूस अचंभा
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
जमा रहे हैं बेटा-बेटी, दौलत सत्ता-गोटी
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
रोटी रोटी रोटी।
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
बर्फ़ हिमालय की चोटी की मुझको दिखती काली
+
सबमें अपनेपन की माया
काली का खप्पर ख़ाली है नाच रही दे ताली
+
अपने पन में जीवन आया
मैं देता हूँ, वो ले आकर, मेरी बोटी-बोटी
+
</div>
रोटी रोटी रोटी।
+
</div></div>
बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटी
+
जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटी
+
रोटी रोटी रोटी।
+
</pre>
+
<!----BOX CONTENT ENDS------>
+
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
+

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया