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खिड़की के पास खड़ी होकर | खिड़की के पास खड़ी होकर |
19:21, 28 मार्च 2011 के समय का अवतरण
खिड़की के पास खड़ी होकर
वो चांद पकड़ना चाहे
फैली थी वितान में ऊपर
उसकी दो पतली बाहें
चमक रहा था उसका चेहरा
थी वसन्त की रात
चेहरे पर बरस रहा था उसके
चन्द्रकिरणों का प्रपात