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"ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में / शहरयार" के अवतरणों में अंतर

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ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
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ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
  
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सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
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दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
  
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें <br>
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याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें <br><br>
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रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें  
  
सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें <br>
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हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें <br><br>
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अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
  
याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से <br>
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'''टिप्पणी'''
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें <br><br>
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इस गज़ल को शहरयार ने फ़िल्म "उमराव जान" के लिये लिखा था। फ़िल्म में नायिका उमराव जान एक शायरा भी हैं और उनका तख़ल्लुस "अदा" है।
 
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हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है <br>
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अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें<br><br><br>
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इस गज़ल को शहरयार ने फ़िल्म "उमराव जान" के लिये लिखा था। फ़िल्म में नायिका उमराव जान एक शायरा भी हैं और उनका तख़ल्लुस "अदा" है।<br><br>
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00:41, 25 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें

सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें

याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें

टिप्पणी
इस गज़ल को शहरयार ने फ़िल्म "उमराव जान" के लिये लिखा था। फ़िल्म में नायिका उमराव जान एक शायरा भी हैं और उनका तख़ल्लुस "अदा" है।