भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निराशावादी / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[रामधारी सिंह "दिनकर"]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:रामधारी सिंह "दिनकर"]]
+
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
 +
|संग्रह=धूप और धुआँ / रामधारी सिंह "दिनकर"
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा,
 +
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास;
 +
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,
 +
बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ?
 
+
तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,
पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा<br>
+
लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास<br><br>
+
बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।
 
+
</poem>
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,<br>
+
बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।<br><br>
+
 
+
क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ?<br>
+
तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,<br><br>
+
 
+
लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?<br>
+
बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।<br><br>
+

19:09, 21 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा,
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास;
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,
बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास ।

क्या कहा कि मैं घनघोर निराशावादी हूँ?
तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,
लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?
बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो ।