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"था तुम्हें मैंने रुलाया / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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था तुम्हें मैंने रुलाया!
  
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हाय, मृदु इच्छा तुम्हारी!
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हा, उपेक्षा कटु हमारी!
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था बहुत माँगा न तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
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था तुम्हें मैंने रुलाया!
  
हा, तुम्हारी मृदुल इच्छा!<br>
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स्नेह का वह कण तरल था,
हाय, मेरी कटु अनिच्छा!<br>
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मधु न था, न सुधा-गरल था,
था बहुत माँगा ना तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!<br>
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एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!<br><br>
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था तुम्हें मैंने रुलाया!
  
स्नेह का वह कण तरल था,<br>
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बूँद कल की आज सागर,
मधु न था, न सुधा-गरल था,<br>
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सोचता हूँ बैठ तट पर -
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!<br>
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क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!<br><br>
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था तुम्हें मैंने रुलाया!
 
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बूँद कल की आज सागर,<br>
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सोचता हूँ बैठ तट पर -<br>
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क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!<br>
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था तुम्हें मैंने रुलाया!<br><br><br>
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-- हरिवंशराय बच्चन के कविता संग्रह "निशा निमन्त्रण" से<br><br>
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01:36, 5 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

था तुम्हें मैंने रुलाया!

हाय, मृदु इच्छा तुम्हारी!
हा, उपेक्षा कटु हमारी!
था बहुत माँगा न तुमने किन्तु वह भी दे ना पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

स्नेह का वह कण तरल था,
मधु न था, न सुधा-गरल था,
एक क्षण को भी, सरलते, क्यों समझ तुमको न पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!

बूँद कल की आज सागर,
सोचता हूँ बैठ तट पर -
क्यों अभी तक डूब इसमें कर न अपना अंत पाया!
था तुम्हें मैंने रुलाया!