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"धर्म / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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− | मैंने उसको फैला दिया, | + | अधरों में आई |
− | मुझको सन्तोष हुआ | + | मैंने उसको फैला दिया, |
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+ | बड़ा करना धर्म है । | ||
+ | </poem> |
11:13, 30 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
तेज़ी से एक दर्द
मन में जागा
मैंने पी लिया,
छोटी सी एक ख़ुशी
अधरों में आई
मैंने उसको फैला दिया,
मुझको सन्तोष हुआ
और लगा –-
हर छोटे को
बड़ा करना धर्म है ।