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"कुंठा / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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मेरी कुंठा
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रेशम के कीड़ों-सी
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बाहर आने को सिर धुनती,
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मेरी कुंठा –- कुँवारी कुंती!
  
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बाहर आने दूँ
 
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तो लोक-लाज मर्यादा
मेरी कुण्ठा<br>
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भीतर रहने दूँ
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तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
ताने-बाने बुनती,<br>
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मेरा यह व्यक्तित्व
तड़फ तड़फकर<br>
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सिमटने पर आमादा।
बाहर आने को सिर धुनती,<br>
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स्वर से<br>
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शब्दों से<br>
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भावों से<br>
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औ' वीणा से कहती-सुनती,<br>
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मेरी कुण्ठा – कुँवारी कुंती!<br><br>
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बाहर आने दूँ<br>
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तो लोक-लाज मर्यादा<br>
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तो घुटन, सहन से ज़्यादा,<br>
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मेरा यह व्यक्तित्व<br>
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सिमटने पर आमादा ।<br><br>
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11:10, 30 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण

मेरी कुंठा
रेशम के कीड़ों-सी
ताने-बाने बुनती,
तड़प तड़पकर
बाहर आने को सिर धुनती,
स्वर से
शब्दों से
भावों से
औ' वीणा से कहती-सुनती,
गर्भवती है
मेरी कुंठा –- कुँवारी कुंती!

बाहर आने दूँ
तो लोक-लाज मर्यादा
भीतर रहने दूँ
तो घुटन, सहन से ज़्यादा,
मेरा यह व्यक्तित्व
सिमटने पर आमादा।