भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(9 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 162 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div>
+
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div>
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
+
<!----BOX CONTENT STARTS------>
+
<table width=100% style="background:transparent">
+
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
+
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''वह कैसे कहेगी<br>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अशोक वाजपेयी]]</td>
+
</tr>
+
</table>
+
  
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
+
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
वह कैसे कहेगी – हाँ!
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
हाँ कहेंगे
+
<div style="text-align: center;">
 +
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 +
</div>
  
उसके
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
अनुरक्त नेत्र
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
 +
अपरिचित पास आओ
  
उसके
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
उदग्र-उत्सुक कुचाग्र
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
 +
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
 +
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
उसकी देह की  
+
सबमें अपनेपन की माया
चकित धूप
+
अपने पन में जीवन आया
 
+
</div>
उसके आर्द्र अधर
+
</div></div>
कहेंगे – हाँ
+
 
+
वह कैसे कहेगी – हाँ ?
+
</pre>
+
<!----BOX CONTENT ENDS------>
+
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
+

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया