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"दीप जलता रहा / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर

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जिस तरह आग
 
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वन में लगी हुई है,--
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::वन में लगी हुई है,--
 
एकता में सरस
 
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भास है--दुई है,--
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सत्य में भ्रम हुआ है,--
 
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छुईमुई है,
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मान बढ़ता रहा,
 
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उम्र ढलती रही।
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समय की बाट पर,
 
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हाट जैसे लगी,--
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मोल चलता रहा,
 
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झोल जैसे दगी,--
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पलक दल रुक गये,
 
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आँख जैसे लगी,--
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काल खुलता रहा
 
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10:19, 17 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

दीप जलता रहा,
हवा चलती रही;
नीर पलता रहा,
बर्फ गलती रही।

जिस तरह आग
वन में लगी हुई है,--
एकता में सरस
भास है--दुई है,--
सत्य में भ्रम हुआ है,--
छुईमुई है,
मान बढ़ता रहा,
उम्र ढलती रही।

समय की बाट पर,
हाट जैसे लगी,--
मोल चलता रहा,
झोल जैसे दगी,--
पलक दल रुक गये,
आँख जैसे लगी,--
काल खुलता रहा