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"जंगल गाथा / अशोक चक्रधर" के अवतरणों में अंतर

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पानी से निकलकर<br>
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मगरमच्छ किनारे पर आया,<br>
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1.
इशारे से<br>
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एक नन्हा मेमना
बंदर को बुलाया.<br>
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और उसकी माँ बकरी,
बंदर गुर्राया-<br>
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जा रहे थे जंगल में
खों खों, क्यों,<br>
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राह थी संकरी।
तुम्हारी नजर में तो<br>
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अचानक सामने से आ गया एक शेर,
मेरा कलेजा है?<br><br>
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लेकिन अब तो
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हो चुकी थी बहुत देर।
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भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
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बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
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उधर शेर के कदम धरती नापें,
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इधर ये दोनों थर-थर कापें।
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अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
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बकरी लगी जैसे-जैसे
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बच्चे को थामने।
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छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
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शेर अंकल!
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क्या तुम हमें खा जाओगे
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एकदम कच्चा?
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शेर मुस्कुराया,
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उसने अपना भारी पंजा
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मेमने के सिर पर फिराया।
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बोला-
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हे बकरी - कुल गौरव,
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आयुष्मान भव!
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दीर्घायु भव!
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चिरायु भव!
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कर कलरव!
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हो उत्सव!
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साबुत रहें तेरे सब अवयव।
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आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
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कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
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उछलो, कूदो, नाचो
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और जियो हँसते-हँसते
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अच्छा बकरी मैया नमस्ते!
  
मगर्मच्छ बोला-<br>
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इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने<br>
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बकरी हैरान-
खास तुम्हारे लिये<br>
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बेटा ताज्जुब है,
सिंघाड़े का अचार भेजा है.<br><br>
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भला ये शेर किसी पर
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रहम खानेवाला है,
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लगता है जंगल में
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चुनाव आनेवाला है।
  
बंदर ने सोचा<br>
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2.
ये क्या घोटाला है,<br>
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पानी से निकलकर
लगता है जंगल में<br>
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मगरमच्छ किनारे पर आया,
चुनाव आने वाला है.<br>
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इशारे से
लेकिन प्रकट में बोला-<br>
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बंदर को बुलाया.
वाह!<br>
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बंदर गुर्राया-
अचार, वो भी सिंघाड़े का,<br>
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खों खों, क्यों,
यानि तालाब के कबाड़े का!<br>
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तुम्हारी नजर में तो
बड़ी ही दयावान<br>
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मेरा कलेजा है?
तुम्हारी मादा है,<br>
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लगता है शेर के खिलाफ़<br>
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चुनाव लड़ने का इरादा है.<br><br>
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कैसे जाना, कैसे जाना?<br>
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मगरमच्छ बोला-
ऐसे जाना, ऐसे जाना<br>
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नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
कि आजकल<br>
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खास तुम्हारे लिये
भ्रष्टाचार की नदी में<br>
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सिंघाड़े का अचार भेजा है.
नहाने के बाद<br>
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जिसकी भी छवि स्वच्छ है,<br>
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वही तो मगरमच्छ है.<br>
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+
बंदर ने सोचा
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ये क्या घोटाला है,
एक नन्हा मेमना<br>
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लगता है जंगल में
और उसकी माँ बकरी,<br>
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चुनाव आने वाला है.
जा रहे थे जंगल में<br>
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लेकिन प्रकट में बोला-
राह थी संकरी।<br>
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वाह!
अचानक सामने से आ गया एक शेर,<br>
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अचार, वो भी सिंघाड़े का,
लेकिन अब तो<br>
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यानि तालाब के कबाड़े का!
हो चुकी थी बहुत देर।<br>
+
बड़ी ही दयावान
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,<br>
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तुम्हारी मादा है,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।<br>
+
लगता है शेर के खिलाफ़
उधर शेर के कदम धरती नापें,<br>
+
चुनाव लड़ने का इरादा है.
इधर ये दोनों थर-थर कापें।<br>
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अब तो शेर आ गया एकदम सामने,<br>
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बकरी लगी जैसे-जैसे<br>
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बच्चे को थामने।<br>
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छिटककर बोला बकरी का बच्चा-<br>
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शेर अंकल!<br>
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क्या तुम हमें खा जाओगे<br>
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एकदम कच्चा?<br>
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शेर मुस्कुराया,<br>
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उसने अपना भारी पंजा<br>
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मेमने के सिर पर फिराया।<br>
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बोला-<br>
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हे बकरी - कुल गौरव,<br>
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आयुष्मान भव!<br>
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दीर्घायु भव!<br>
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चिरायु भव!<br>
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कर कलरव!<br>
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हो उत्सव!<br>
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साबुत रहें तेरे सब अवयव।<br>
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आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,<br>
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कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा<br>
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उछलो, कूदो, नाचो<br>
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और जियो हँसते-हँसते<br>
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अच्छा बकरी मैया नमस्ते!<br>
+
  
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,<br>
+
कैसे जाना, कैसे जाना?
बकरी हैरान-<br>
+
ऐसे जाना, ऐसे जाना
बेटा ताज्जुब है,<br>
+
कि आजकल
भला ये शेर किसी पर<br>
+
भ्रष्टाचार की नदी में
रहम खानेवाला है,<br>
+
नहाने के बाद
लगता है जंगल में<br>
+
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
चुनाव आनेवाला है।<br>
+
वही तो मगरमच्छ है.

19:39, 15 मार्च 2013 के समय का अवतरण

 
1.
एक नन्हा मेमना
और उसकी माँ बकरी,
जा रहे थे जंगल में
राह थी संकरी।
अचानक सामने से आ गया एक शेर,
लेकिन अब तो
हो चुकी थी बहुत देर।
भागने का नहीं था कोई भी रास्ता,
बकरी और मेमने की हालत खस्ता।
उधर शेर के कदम धरती नापें,
इधर ये दोनों थर-थर कापें।
अब तो शेर आ गया एकदम सामने,
बकरी लगी जैसे-जैसे
बच्चे को थामने।
छिटककर बोला बकरी का बच्चा-
शेर अंकल!
क्या तुम हमें खा जाओगे
एकदम कच्चा?
शेर मुस्कुराया,
उसने अपना भारी पंजा
मेमने के सिर पर फिराया।
बोला-
हे बकरी - कुल गौरव,
आयुष्मान भव!
दीर्घायु भव!
चिरायु भव!
कर कलरव!
हो उत्सव!
साबुत रहें तेरे सब अवयव।
आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,
कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा
उछलो, कूदो, नाचो
और जियो हँसते-हँसते
अच्छा बकरी मैया नमस्ते!

इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,
बकरी हैरान-
बेटा ताज्जुब है,
भला ये शेर किसी पर
रहम खानेवाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आनेवाला है।

2.
पानी से निकलकर
मगरमच्छ किनारे पर आया,
इशारे से
बंदर को बुलाया.
बंदर गुर्राया-
खों खों, क्यों,
तुम्हारी नजर में तो
मेरा कलेजा है?

मगरमच्छ बोला-
नहीं नहीं, तुम्हारी भाभी ने
खास तुम्हारे लिये
सिंघाड़े का अचार भेजा है.

बंदर ने सोचा
ये क्या घोटाला है,
लगता है जंगल में
चुनाव आने वाला है.
लेकिन प्रकट में बोला-
वाह!
अचार, वो भी सिंघाड़े का,
यानि तालाब के कबाड़े का!
बड़ी ही दयावान
तुम्हारी मादा है,
लगता है शेर के खिलाफ़
चुनाव लड़ने का इरादा है.

कैसे जाना, कैसे जाना?
ऐसे जाना, ऐसे जाना
कि आजकल
भ्रष्टाचार की नदी में
नहाने के बाद
जिसकी भी छवि स्वच्छ है,
वही तो मगरमच्छ है.