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"ग़म बढ़े आते हैं / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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दिल ही दुश्मन हैं मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह
  
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हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
तुम छिपा लो मुझे, ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह <br><br>
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हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त <br>
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जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाये, "फ़ाकिर" <br>
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17:25, 19 मई 2009 के समय का अवतरण

ग़म बढे़ आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह
तुम छिपा लो मुझे, ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह

अपनी नज़रों में गुनाहगार न होते, क्यों कर
दिल ही दुश्मन हैं मुख़ालिफ़ के गवाहों की तरह

हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तेरी याद के साये हैं पनाहों की तरह

जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाये, "फ़ाकिर"
वो भी पेश आये हैं इंसाफ़ के शाहों की तरह