"रहीम के दोहे / भाग १" के अवतरणों में अंतर
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+ | छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात। | ||
+ | कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥ | ||
− | + | तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। | |
+ | कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥ | ||
− | + | दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। | |
− | + | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥ | |
− | + | खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान। | |
− | + | रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥ | |
− | + | जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय। | |
− | + | प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥ | |
− | + | बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय। | |
− | रहिमन | + | रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥ |
− | + | आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि। | |
− | + | ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥ | |
− | + | खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय। | |
− | रहिमन | + | रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥ |
− | + | चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह। | |
− | + | जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥ | |
− | + | जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग। | |
− | + | कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥10॥ | |
− | + | जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय। | |
− | + | बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥11॥ | |
− | + | रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। | |
− | + | जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥12॥ | |
− | + | बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय। | |
− | + | ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥13॥ | |
− | + | एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय। | |
− | + | रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥15॥ | |
− | + | रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि। | |
− | + | उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥ | |
− | + | रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय। | |
− | + | हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥17॥ | |
− | + | बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। | |
− | + | पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥18॥ | |
− | रहिमन | + | रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय। |
− | + | सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥19॥ | |
− | रहिमन | + | रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर। |
− | + | जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥20॥ | |
− | + | बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। | |
− | + | औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥21॥ | |
− | + | मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय। | |
− | + | फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥22॥ | |
− | + | दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं। | |
− | + | जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥23॥ | |
− | + | रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत। | |
− | + | काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥24॥ | |
− | रहिमन | + | रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। |
− | + | टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥25॥ | |
− | रहिमन | + | रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। |
− | + | पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥26॥ | |
− | + | वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। | |
− | + | बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥27॥ | |
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− | वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। | + | |
− | बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को | + |
11:39, 23 मार्च 2013 के समय का अवतरण
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥1॥
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥2॥
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥3॥
खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥4॥
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥5॥
बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥6॥
आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि॥7॥
खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥8॥
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥9॥
जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥10॥
जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥11॥
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥12॥
बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥13॥
एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥15॥
रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥16॥
रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥17॥
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥18॥
रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥19॥
रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥20॥
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥21॥
मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥22॥
दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥23॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥24॥
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥25॥
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥26॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥27॥