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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शीन काफ़ निज़ाम]]</td>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया
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अब क्या हुआ कि ख़ुद को मैं पहचानता नहीं
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<div style="text-align: center;">
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कुहरा भी छँट गया
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
हम मुन्तज़िर थे शाम से सूरज के दोस्तों
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
लेकिन वो आया सर पे तो क़द अपना घट गया
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
गाँवों को छोड़ कर तो चले आए शहर में  
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
जाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गया
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
किससे पनाह मांगे कहाँ जाएँ क्या करें
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सबमें अपनेपन की माया
फिर आफ़ताब रात का घूँघट उलट गया
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अपने पन में जीवन आया
 
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सैलाब-ए-नूर में जो रहा मुझ से दूर-दूर
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वो शख़्स फिर अन्धेरे में मुझसे लिपट गया
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया