भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीड़ा का आनन्द / श्रीकृष्ण सरल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[श्रीकृष्ण सरल]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:श्रीकृष्ण सरल]]
+
|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल
 
+
}}
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
  
 
जो कष्ट दूसरे के हैं ओढ़ लिया करते
 
जो कष्ट दूसरे के हैं ओढ़ लिया करते

01:02, 24 मार्च 2008 के समय का अवतरण

जो कष्ट दूसरे के हैं ओढ़ लिया करते

वह कष्ट नहीं होता, आनन्द कहाता है,

कहने वाले कहते, वह पीड़ा भुगत रहा

उस पीड़ा में भी वह मिठास ही पाता है।


हम व्यक्ति राष्ट्र या फिर समाज के दुख बाँटे

अनुभूति नहीं फिर दुख की कोई भी करता

वह यही गर्व करता, मैं नहीं अकेला हूँ

वह तो सुख का अनुभव करता, जो दुख हरता ।


हम अगर किसी का धन बाँटें, दुख पाएँगे

हम कष्ट किसी के बाँटे, मन को सुख होगा

सुख के बाँटे सुख मिलता, दुख के बाँटे दुख

यह नियम प्रकृति का अटल, न कभी विमुख होगा।