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"आम की टहनी / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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देख करके बौर वाली
 
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आम की टहनी
 
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तन गये घुटने कि जैसे
 
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खुल गई कुहनी ।
खुल गयी कुहनी।
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धूप बतियाती हवा से
 
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रंग बतियाते
 
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फूल-पत्तों के ठहाके
 
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दूर तक जाते
 
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पीठ पर बस्ता लिए
 
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हँसी की हो गई बोहनी।
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पीठ पर बस्ता लिये
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विद्या कसम खाते
 
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जा रहे स्कूल बच्चे
 
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शब्द खनकाते
 
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      सब रम गए हैं सुध नहीं अपनी ।
  
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राग में डूबीं दिशाएँ
 
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सब रम गये हैं सुध नहीं अपनी।
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रंग में डूबीं
 
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हाथ आई ज़िन्दगी के
हाथ आयी ज़िन्दगी के
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संग में डूबीं
 
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      कल
कल
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      उतरने जा रही है खेत में कटनी
 
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उतरने जा रही है खेत में कटनी
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13:00, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

देख करके बौर वाली
आम की टहनी
तन गये घुटने कि जैसे
खुल गई कुहनी ।

धूप बतियाती हवा से
रंग बतियाते
फूल-पत्तों के ठहाके
दूर तक जाते
      छू गई चुटकी
      हँसी की हो गई बोहनी ।

पीठ पर बस्ता लिए
विद्या कसम खाते
जा रहे स्कूल बच्चे
शब्द खनकाते
      इस तरह
      सब रम गए हैं सुध नहीं अपनी ।

राग में डूबीं दिशाएँ
रंग में डूबीं
हाथ आई ज़िन्दगी के
संग में डूबीं
      कल
      उतरने जा रही है खेत में कटनी ।