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02:25, 19 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
सारी इच्छाएँ वैसे नहीं झरतीं
जैसे सूखे पत्ते
कुछ सूखे बीजों-सी
पैरों के नीचे आकर भी
फिर उसी ज़मीन पर
रच लेतीं रंग रूप आकार अपना
यूँ बार-बार जन्मने मरने के बीच
वे ढूँढ़ती हैं बेस्वाद
जीवन में स्वाद
यूँ वे बिना कहीं पहुँचे
अपने सफ़र में रहती हैं।