"आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ, | आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ, | ||
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चरणों में श्रद्धांजलियाँ अर्पण कर जाओ, | चरणों में श्रद्धांजलियाँ अर्पण कर जाओ, | ||
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यह रात आखिरी उनके भौतिक जीवन की, | यह रात आखिरी उनके भौतिक जीवन की, | ||
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कल उसे करेंगी | कल उसे करेंगी | ||
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भस्म चिता की | भस्म चिता की | ||
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ज्वालाएँ। | ज्वालाएँ। | ||
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डांडी के यारत्रा करने वाले चरण यही, | डांडी के यारत्रा करने वाले चरण यही, | ||
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नोआखाली के संतप्तों की शरण यही, | नोआखाली के संतप्तों की शरण यही, | ||
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छू इनको ही क्षिति मुक्त हुई चंपारन की, | छू इनको ही क्षिति मुक्त हुई चंपारन की, | ||
− | + | इनको चापों ने | |
− | इनको चापों ने | + | पापों के दल |
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− | पापों के दल | + | |
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दहलाए। | दहलाए। | ||
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यह उदर देश की भुख जानने वाला था, | यह उदर देश की भुख जानने वाला था, | ||
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जन-दुख-संकट ही इसका ही नित्य नेवाला था, | जन-दुख-संकट ही इसका ही नित्य नेवाला था, | ||
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इसने पीड़ा बहु बार सही अनशन प्रण की | इसने पीड़ा बहु बार सही अनशन प्रण की | ||
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आघात गोलियाँ | आघात गोलियाँ | ||
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के ओढ़े | के ओढ़े | ||
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बाएँ-दाएँ। | बाएँ-दाएँ। | ||
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यह छाती परिचित थी भारत की धड़कन से, | यह छाती परिचित थी भारत की धड़कन से, | ||
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यह छाती विचलित थी भारत की तड़पन से, | यह छाती विचलित थी भारत की तड़पन से, | ||
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यह तानी जहाँ, बैठी हिम्मत गोले-गन की | यह तानी जहाँ, बैठी हिम्मत गोले-गन की | ||
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अचरज ही है | अचरज ही है | ||
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पिस्तौल इसे जो | पिस्तौल इसे जो | ||
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बिठलाए। | बिठलाए। | ||
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इन आँखों को था बुरा देखना नहीं सहन, | इन आँखों को था बुरा देखना नहीं सहन, | ||
− | + | जो नहीं बुरा कुछ सुनते थे ये वही श्रवण, | |
− | जो नहीं बुरा कुछ | + | |
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मुख यही कि जिससे कभी न निकला बुरा वचन, | मुख यही कि जिससे कभी न निकला बुरा वचन, | ||
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यह बंद-मूक | यह बंद-मूक | ||
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जग छलछुद्रों से | जग छलछुद्रों से | ||
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उकताए। | उकताए। | ||
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यह देखो बापू की आजानु भुजाएँ हैं, | यह देखो बापू की आजानु भुजाएँ हैं, | ||
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उखड़े इनसे गोराशाही के पाए हैं, | उखड़े इनसे गोराशाही के पाए हैं, | ||
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लाखों इनकी रक्षा-छाया-में आए हैं, | लाखों इनकी रक्षा-छाया-में आए हैं, | ||
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ये हाथ सबल | ये हाथ सबल | ||
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निज रक्षा में | निज रक्षा में | ||
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क्यों सकुचाए। | क्यों सकुचाए। | ||
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यह बापू की गर्वीली, ऊँची पेशानी, | यह बापू की गर्वीली, ऊँची पेशानी, | ||
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बस एक हिमालय की चोटी इनकी सनी, | बस एक हिमालय की चोटी इनकी सनी, | ||
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इससे ही भारत ने अपनी भावी जानी, | इससे ही भारत ने अपनी भावी जानी, | ||
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जिसने इनको वध करने की मन में ठानी | जिसने इनको वध करने की मन में ठानी | ||
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उसने भारत की किस्मत में फेरा पानी; | उसने भारत की किस्मत में फेरा पानी; | ||
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इस देश-जाती के हुए विधाता | इस देश-जाती के हुए विधाता | ||
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ही बाएँ। | ही बाएँ। | ||
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15:03, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
आओ बापू के अंतिम दर्शन कर जाओ,
चरणों में श्रद्धांजलियाँ अर्पण कर जाओ,
यह रात आखिरी उनके भौतिक जीवन की,
कल उसे करेंगी
भस्म चिता की
ज्वालाएँ।
डांडी के यारत्रा करने वाले चरण यही,
नोआखाली के संतप्तों की शरण यही,
छू इनको ही क्षिति मुक्त हुई चंपारन की,
इनको चापों ने
पापों के दल
दहलाए।
यह उदर देश की भुख जानने वाला था,
जन-दुख-संकट ही इसका ही नित्य नेवाला था,
इसने पीड़ा बहु बार सही अनशन प्रण की
आघात गोलियाँ
के ओढ़े
बाएँ-दाएँ।
यह छाती परिचित थी भारत की धड़कन से,
यह छाती विचलित थी भारत की तड़पन से,
यह तानी जहाँ, बैठी हिम्मत गोले-गन की
अचरज ही है
पिस्तौल इसे जो
बिठलाए।
इन आँखों को था बुरा देखना नहीं सहन,
जो नहीं बुरा कुछ सुनते थे ये वही श्रवण,
मुख यही कि जिससे कभी न निकला बुरा वचन,
यह बंद-मूक
जग छलछुद्रों से
उकताए।
यह देखो बापू की आजानु भुजाएँ हैं,
उखड़े इनसे गोराशाही के पाए हैं,
लाखों इनकी रक्षा-छाया-में आए हैं,
ये हाथ सबल
निज रक्षा में
क्यों सकुचाए।
यह बापू की गर्वीली, ऊँची पेशानी,
बस एक हिमालय की चोटी इनकी सनी,
इससे ही भारत ने अपनी भावी जानी,
जिसने इनको वध करने की मन में ठानी
उसने भारत की किस्मत में फेरा पानी;
इस देश-जाती के हुए विधाता
ही बाएँ।