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"मैं तुझे फिर मिलूँगी / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर

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मैं तुझे फ़िर मिलूंगी
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कहाँ किस तरह पता नही
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मैं तुझे फिर मिलूँगी
शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन
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कहाँ कैसे पता नहीं
तेरे केनवास पर उतरुंगी
+
शायद तेरे कल्पनाओं
 +
की प्रेरणा बन
 +
तेरे केनवास पर उतरुँगी
 
या तेरे केनवास पर
 
या तेरे केनवास पर
 
एक रहस्यमयी लकीर बन
 
एक रहस्यमयी लकीर बन
खामोश तुझे देखती रहूंगी
+
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
या फ़िर सूरज कि लौ बन कर
+
मैं तुझे फिर मिलूँगी
तेरे रंगो में घुलती रहूंगी
+
कहाँ कैसे पता नहीं
या रंगो कि बाहों में बैठ कर
+
 
तेरे केनवास से लिपट जाउंगी
+
या सूरज की लौ बन कर
 +
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
 +
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
 +
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
 
पता नहीं कहाँ किस तरह
 
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे जरुर मिलूंगी
+
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी
  
या फ़िर एक चश्मा बनी
+
या फिर एक चश्मा बनी
 
जैसे झरने से पानी उड़ता है
 
जैसे झरने से पानी उड़ता है
 
मैं पानी की बूंदें
 
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूंगी
+
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक ठंडक सी बन कर
+
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूंगी
+
तेरे सीने से लगूँगी
  
 
+
मैं और तो कुछ नहीं जानती
मैं और कुछ नही जानती
+
 
पर इतना जानती हूँ
 
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जी भी करेगा
+
कि वक्त जो भी करेगा
 
यह जनम मेरे साथ चलेगा
 
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म खतम होता है
+
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है
+
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
  
पर चेतना के धागे
+
पर यादों के धागे
कायनात के कण होते हैं
+
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
 +
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
 +
उन धागों को समेट लूंगी
 +
मैं तुझे फिर मिलूँगी
 +
कहाँ कैसे पता नहीं
  
मैं उन कणों को चुनुंगी
+
मैं तुझे फिर मिलूँगी!!  
मैं तुझे फ़िर मिलूंगी !!  
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17:23, 16 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण

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मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुँगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूँगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी

या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं

मैं तुझे फिर मिलूँगी!!