भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"खिड़कियाँ खोल दी हैं / कुँअर रवीन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर रवीन्द्र }} {{KKCatKavita}} <poem> मैंने खिड़कियाँ खोल…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("खिड़कियाँ खोल दी हैं / कुँअर रवीन्द्र" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
मै दरवाज़ों-खिड़कियों पर | मै दरवाज़ों-खिड़कियों पर | ||
पर्दे नहीं लटकाता | पर्दे नहीं लटकाता | ||
− | </poem | + | </poem> |
21:32, 13 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
मैंने खिड़कियाँ खोल दी हैं
खोल दिए सारे
रोशनदानों के पट
सारा घर रोशनी से भर गया
सुवासित हो गया तुम्हारी सुगंध से
दरवाज़े खोल देता हूँ
खिड़कियों से जो दिख रहे हैं
जंगल ,पहाड़, नदियों के दृश्य
शायद आ जाएँ भीतर
मै दरवाज़ों-खिड़कियों पर
पर्दे नहीं लटकाता