भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=[[गा़लिब]]
+
|रचनाकार=ग़ालिब
 +
|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
 +
आदमी को भी मयस्सर<ref>आसान</ref> नहीं इंसां होना
  
बस कि दुश्वार है हर काम क आसाँ होना <br>
+
गिरियां<ref>रुदन</ref> चाहे है ख़राबी मेरे काशाने<ref>घर</ref> की
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्साँ होना<br><br>
+
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां<ref>रेगिस्तान</ref> होना
  
गिरिया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की<br>
+
वाए<ref>हाय</ref>, दीवानगी--शौक़ कि हरदम मुझको
दर--दीवार से टपके है बयाबाँ होना<br><br>
+
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना
  
वा-ए-दीवानगी-ए-शौक़ के हर दम मुझ को<br>
+
जल्वा अज़-बसकि<ref>इस हद तक</ref> तक़ाज़ा<ref>दावा</ref>-ए-निगह करता है
आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना<br><br>
+
जौहर-ए-आईना<ref>आईने का दाग</ref> भी चाहे है मिज़गां<ref>पलकें</ref> होना
  
जल्वा अज़बस के तक़ाज़ा--निगह करता है<br>
+
इशरते-क़त्लगहे-अहले-तमन्ना<ref>चाहने वालों का वध-स्थल का ऐशवर्य</ref> मत पूछ
जौहर-ए-आईन भी चाहे है मिज़ग़ाँ होना<br><br>
+
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां<ref>म्यान से बाहर निकलना, नग्न</ref> होना
  
इश्रत-ए-क़त्लगह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ<br>
+
ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात<ref>खुशी</ref>
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियाँ होना<br><br>
+
तू हो और आप बसद-रंग<ref>सैंकड़ों रंगों में</ref> गुलिस्तां होना
  
ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात<br>
+
इशरत-ए-पारा-ए-दिल<ref>दिल के टुकड़ों का मज़ा</ref> ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना
तू हो और आप ब-सदरंग-ए-गुलिस्ताँ होना<br><br>
+
लज़्ज़त-ए-रेश-ए-जिग़र<ref>जिगर के घाव का मज़ा</ref> ग़र्क़-ए-नमकदां<ref>नमकदान मे डूबना</ref> होना
  
इश्रत-ए-पारा-ए-दिल, ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना<br>
+
की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा<ref>आंतक</ref> से तौबा
लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिगर ग़र्क़-ए-नमक्दाँ होना<br><br>
+
हाय उस ज़ूद-पशेमां<ref>शीघ्र लज्जित होने वाला</ref> का पशेमां<ref>शर्मिंदा</ref> होना
  
की मेरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा<br>
+
हैफ़<ref>संताप</ref> उस चार गिरह<ref>मात्रा</ref> कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
हाये उस ज़ूदपशेमाँ का पशेमाँ होना<br><br>
+
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना
 
+
</poem>
हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'<br>
+
{{KKMeaning}}
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना <br><br>
+

01:42, 26 मार्च 2010 के समय का अवतरण

बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर<ref>आसान</ref> नहीं इंसां होना

गिरियां<ref>रुदन</ref> चाहे है ख़राबी मेरे काशाने<ref>घर</ref> की
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबां<ref>रेगिस्तान</ref> होना

वाए<ref>हाय</ref>, दीवानगी-ए-शौक़ कि हरदम मुझको
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना

जल्वा अज़-बसकि<ref>इस हद तक</ref> तक़ाज़ा<ref>दावा</ref>-ए-निगह करता है
जौहर-ए-आईना<ref>आईने का दाग</ref> भी चाहे है मिज़गां<ref>पलकें</ref> होना

इशरते-क़त्लगहे-अहले-तमन्ना<ref>चाहने वालों का वध-स्थल का ऐशवर्य</ref> मत पूछ
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियां<ref>म्यान से बाहर निकलना, नग्न</ref> होना

ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात<ref>खुशी</ref>
तू हो और आप बसद-रंग<ref>सैंकड़ों रंगों में</ref> गुलिस्तां होना

इशरत-ए-पारा-ए-दिल<ref>दिल के टुकड़ों का मज़ा</ref> ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना
लज़्ज़त-ए-रेश-ए-जिग़र<ref>जिगर के घाव का मज़ा</ref> ग़र्क़-ए-नमकदां<ref>नमकदान मे डूबना</ref> होना

की मेरे क़त्ल के बाद उसने जफ़ा<ref>आंतक</ref> से तौबा
हाय उस ज़ूद-पशेमां<ref>शीघ्र लज्जित होने वाला</ref> का पशेमां<ref>शर्मिंदा</ref> होना

हैफ़<ref>संताप</ref> उस चार गिरह<ref>मात्रा</ref> कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब'
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना

शब्दार्थ
<references/>