भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"द्वाभा के एकाकी प्रेमी / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन…)
 
छो ("द्वाभा के एकाकी प्रेमी / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन पंत
+
|संग्रह=युगांत / सुमित्रानंदन पंत; पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

13:04, 10 जून 2010 के समय का अवतरण

द्वाभा के एकाकी प्रेमी,
नीरव दिगन्त के शब्द मौन,
रवि के जाते, स्थल पर आते
कहते तुम तम से चमक--कौन?
सन्ध्या के सोने के नभ पर
तुम उज्ज्वल हीरक सदृश जड़े,
उदयाचल पर दीखते प्रात
अंगूठे के बल हुए खड़े!
अब सूनी दिशि औ’ श्रान्त वायु,
कुम्हलाई पंकज-कली सृष्टि;
तुम डाल विश्व पर करुण-प्रभा
अविराम कर रहे प्रेम-वृष्टि!
ओ छोटे शशि, चाँदी के उडु!
जब जब फैले तम का विनाश,
तुम दिव्य-दूत से उतर शीघ्र
बरसाओ निज स्वर्गिक प्रकाश!

रचनाकाल: मई’१९३५