"जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने / कुँअर बेचैन" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 39: | पंक्ति 39: | ||
उन संकेतों वाले भावुक घूँघट पर | उन संकेतों वाले भावुक घूँघट पर | ||
दरवाज़े की 'कॉल बैल' हँस जाती है। | दरवाज़े की 'कॉल बैल' हँस जाती है। | ||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
14:58, 1 जून 2017 के समय का अवतरण
जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने
दादी की हँसुली ने, माँ की पायल ने
उस सच्चे घर की कच्ची दीवारों पर
मेरी टाई टँगने से कतराती है।
माँ को और पिता को यह कच्चा घर भी
एक बड़ी अनुभूति, मुझे केवल घटना
यह अंतर ही संबंधों की गलियों में
ला देता है कोई निर्मम दुर्घटना
जिन्हें रँगा जलते दीपक के काजल ने
बूढ़ी गागर से छलके गंगाजल ने
उन दीवारों पर टँगने से पहले ही
पत्नी के कर से साड़ी गिर जाती है।
जब से युग की चकाचौंध के कुहरे ने
छीनी है आँगन से नित्य दिया-बाती
तबसे लिपे आँगनों से, दीवारों से
बंद नाक को सोंधी गंध नहीं आती
जिसे चिना था घुटनों तक की दलदल ने
सने-पुते-झीने ममता के आँचल ने
पुस्तक के पन्नों में पिची हुई राखी
उस घर को घर कहने में शरमाती है।
साड़ी-टाई बदलें, या ये घर बदलें
प्रश्नचिह्न नित और बड़ा होता जाता
कारण केवल यही, दिखावों से जुड़ हम
तोड़ रहे अनुभूति, भावना से नाता
जिन्हें दिया संगीत द्वार की साँकल ने
खाँसी के ठनके, चूड़ी की हलचल ने
उन संकेतों वाले भावुक घूँघट पर
दरवाज़े की 'कॉल बैल' हँस जाती है।