भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
 
|संग्रह=उद्धव-शतक / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
 
}}
 
}}
 +
{{KKAnthologyKrushn}}
 
{{KKCatKavitt}}
 
{{KKCatKavitt}}
 
<poem>
 
<poem>
 
आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह,
 
आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह,
अकथ कथानि की व्यथा सौं अकुलात हैं ।
+
::अकथ कथानि की व्यथा सौं अकुलात हैं ।
 
कहै रतनाकर बुझाइ कछु रोकै पाय,
 
कहै रतनाकर बुझाइ कछु रोकै पाय,
पुनि कछु ध्यान उर धाइ उरझात हैं ॥
+
::पुनि कछु ध्यान उर धाइ उरझात हैं ॥
 
उसीस उसांसनि सौं बहि बहि आंसनि सौं,
 
उसीस उसांसनि सौं बहि बहि आंसनि सौं,
भूरि भरे हिय के हुलास न उरात हैं ।
+
::भूरि भरे हिय के हुलास न उरात हैं ।
 
सीरे तपे विविध संदेसनि सो बातनि की,
 
सीरे तपे विविध संदेसनि सो बातनि की,
घातनि की झोंक मैं लगेई चले जात हैं ॥21॥
+
::घातनि की झोंक मैं लगेई चले जात हैं ॥21॥
 
</poem>
 
</poem>

20:18, 18 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

आइ ब्रज-पथ रथ ऊधौ कौं चढ़ाइ कान्ह,
अकथ कथानि की व्यथा सौं अकुलात हैं ।
कहै रतनाकर बुझाइ कछु रोकै पाय,
पुनि कछु ध्यान उर धाइ उरझात हैं ॥
उसीस उसांसनि सौं बहि बहि आंसनि सौं,
भूरि भरे हिय के हुलास न उरात हैं ।
सीरे तपे विविध संदेसनि सो बातनि की,
घातनि की झोंक मैं लगेई चले जात हैं ॥21॥