भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"माँ-2 / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल | |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatKavita}} |
+ | {{KKAnthologyMaa}} | ||
<poem> | <poem> | ||
तुम्हारा आँचल | तुम्हारा आँचल | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 17: | ||
कितना छोटा है माँ | कितना छोटा है माँ | ||
नहीं समा पाता जिसमें | नहीं समा पाता जिसमें | ||
− | तुम्हार बुढा़पा... | + | तुम्हार बुढा़पा... |
</poem> | </poem> |
18:12, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
तुम्हारा आँचल
कितना बडा़ था माँ
समा जाते थे जिसमें
मेरे सारे खेल
सारे सपने
सारी गुस्ताखियाँ...
मेरा दामन
कितना छोटा है माँ
नहीं समा पाता जिसमें
तुम्हार बुढा़पा...