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"क़तआत / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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ये निशानी रह गयी है अब बजाए-अन्दलीब
 
ये निशानी रह गयी है अब बजाए-अन्दलीब
  
शब को ज़ौक़े-गुफ़्तगू से तेरे दिल बेताब था
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शब को ज़ौक़े-गुफ़्तगू से तेरा दिल बेताब था
शोख़ी-ए-वहशत से अफसाना फुसूने<ref>जादू</ref>-ख़्वाब था
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शोख़ी-ए-वहशत से अफ़साना फ़ुसूने<ref>जादू</ref>-ख़्वाब था
 
वां हजूमे-नग़्महाए-साज़े-इशरत था 'असद'
 
वां हजूमे-नग़्महाए-साज़े-इशरत था 'असद'
नाख़ुने-ग़म यां सरे-तारे-नफ़स<ref>सांस</ref> मिज़राब<ref>सितार बजाने का छल्ला</ref> था
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वो दिले-सोज़ां कि कल तक शम्ए-मातमख़ाना था
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वो दिले-सोज़ाँ कि कल तक शम्ए-मातमख़ाना था
शिकवा-ए-यारां ग़ुबारे-दिल में पिनहां कर दिया
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शिकवा-ए-याराँ ग़ुबारे-दिल में पिन्हाँ कर दिया
'ग़ालिब' ऐसे गंज<ref>ख़जाना</ref> को शायां यही वीराना था
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06:52, 27 मार्च 2010 के समय का अवतरण

एक अहले-दर्द ने सुनसान जो देखा क़फ़स<ref>पिंजरा</ref>
यों कहा आती नहीं अब क्यों सदाए-अ़न्दलीब<ref>बुलबुल</ref>
बाल-ओ-पर दो-चार दिखलाकर कहा सय्याद ने
ये निशानी रह गयी है अब बजाए-अन्दलीब

शब को ज़ौक़े-गुफ़्तगू से तेरा दिल बेताब था
शोख़ी-ए-वहशत से अफ़साना फ़ुसूने<ref>जादू</ref>-ख़्वाब था
वां हजूमे-नग़्महाए-साज़े-इशरत था 'असद'
नाख़ुने-ग़म यां<ref>यहाँ</ref> सरे-तारे-नफ़स<ref>सांस</ref> मिज़राब<ref>सितार बजाने का छल्ला</ref> था

दूद<ref>धुआँ</ref> को आज उसके मातम में सियहपोशी हुई
वो दिले-सोज़ाँ कि कल तक शम्ए-मातमख़ाना था
शिकवा-ए-याराँ ग़ुबारे-दिल में पिन्हाँ कर दिया
'ग़ालिब' ऐसे गंज<ref>ख़जाना</ref> को शायाँ यही वीराना था

शब्दार्थ
<references/>