"मेरे देश की आँखें / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> नहीं, ये मेरे देश की आँ…) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अज्ञेय | |रचनाकार=अज्ञेय | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=नदी की बाँक पर छाया / अज्ञेय |
− | }} | + | }}{{KKAnthologyDeshBkthi}} |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> |
15:14, 10 अगस्त 2012 के समय का अवतरण
नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे
छाया प्यार के छलावे बिछाती
मुकुर से उठाई हुई
मुस्कान मुस्कुराती
ये आँखें -
नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं...
तनाव से झुर्रियाँ पड़ी कोरों की दरार से
शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियाँ -
नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं...
वन डालियों के बीच से
चौंकी अनपहचानी
कभी झाँकती हैं
वे आँखें,
मेरे देश की आँखें,
खेतों के पार
मेड़ की लीक धारे
क्षिति-रेखा को खोजती
सूनी कभी ताकती हैं
वे आँखें...
उसने
झुकी कमर सीधी की
माथे से पसीना पोछा
डलिया हाथ से छोड़ी
और उड़ी धूल के बादल के
बीच में से झलमलाते
जाड़ों की अमावस में से
मैले चाँद-चेहरे सुकचाते
में टँकी थकी पलकें
उठायीं -
और कितने काल-सागरों के पार तैर आयीं
मेरे देश की आँखें...
(पुरी-कोणार्क, 2 जनवरी 1980)