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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>हरेक शख्स को है प्यार अपने नग़मों सेयहां किसी के लिए वाह कौन कहता है;वो शख्स जिसको ग़ुमां है कि वो ही बेहतर हैअकेला कांच के घर में ही बंद रहता है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~कोई कहे मैं बाएं हाथ से ही लिखूंगामेरे सफ़ों पे तो मज़दूर या किसां होंगे;मुझे तो भूख या ग़र्दिश से सिर्फ़ निस्बत हैजहां के दर्द मेरे हर्फ़ में अयां होंगे
हरेक शख्स को कोई है और भी जो प्रेम का पुजारी है प्यार अपने नग़मों से<br>यहां किसी के लिए वाह कौन कहता हैकहे कि चाह में उसकी सदा मैं गाऊंगा;<br>वो शख्स जिसको ग़ुमां है कि वो मेरा हबीब ही बेहतर मेरा ख़ुदा है<br>सब जानेंअकेला कांच के घर उसी की याद में ही बंद रहता है<br><br>दिन रात मैं बिताऊंगा
कोई कहे मैं बाएं हाथ किसी को प्यार है कुदरत के हर नज़ारे से ही लिखूंगा<br>मेरे सफ़ों पे तो मज़दूर या किसां होंगेज़मीं से, चांद से, सूरज से हर सितारे से;<br>मुझे तो भूख या ग़र्दिश कलम से सिर्फ़ निस्बत उसके नई बात जब निकलती है<br>जहां मचल के दर्द मेरे हर्फ़ में अयां होंगे<br><br>मिलती है हर मौज तब किनारे से
कोई है और भी जो प्रेम का पुजारी है<br>कहे कि चाह में उसकी सदा मैं गाऊंगा;<br>मेरा हबीब ही मेरा ख़ुदा है सब जानें<br>उसी की याद में दिन रात मैं बिताऊंगा<br><br> किसी को प्यार है कुदरत के हर नज़ारे से<br>ज़मीं से, चांद से, सूरज से हर सितारे से;<br>कलम से उसके नई बात जब निकलती है<br>मचल के मिलती है हर मौज तब किनारे से<br><br> कि मैं ही मैं हूं, चलो सोच ऐसी दफ़न करें<br>हरिक को दाद मिले और कोई बात बने;<br>फ़िदा जो अपने पे होना हमारा छूटे तो<br>विवाद ख़त्म हो, और आदमी की जात बने<br><br/poem>
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