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<div class='box_lk' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop_lk'><div></div></div>
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<!----BOX CONTENT STARTS------>
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<table width=100% style="background:transparent">
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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : पड़ताल  <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[इब्बार रब्बी]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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सर्वहारा को ढूँढ़ने गया मैं
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लक्ष्मीनगर और शकरपुर
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नहीं मिला तो भीलों को ढूँढ़ा किया
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कोटड़ा में
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गुजरात और राजस्थान के सीमांत पर
+
पठार में भटका
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साबरमती की तलहटी
+
पत्थरों में अटका
+
लौटकर दिल्ली आया
+
  
नक्सलवादियों की खोज में
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
भोजपुर गया
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
इटाढ़ी से धर्मपुरा खोजता फिरा
+
कहाँ-कहाँ गिरा हरिजन का ख़ून
+
धब्बे पोंछता रहा
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झोपड़ी पे तनी बंदूक
+
महंत की सुरक्षा देखकर
+
लौट रहा मैं
+
दिल्ली को
+
  
बंधकों की तलाश ले गई पूर्णिया
+
<div style="text-align: center;">
धमदहा, रूपसपुर
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
सुधांशु के गाँव
+
</div>
संथालों-गोंडों के बीच
+
भूख देखता रहा
+
भूख सोचता रहा
+
भूख खाता रहा
+
दिल्ली आके रुका
+
  
रींवा के चंदनवन में
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
ज़हर खाते हरिजन आदिवासी देखे
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
पनासी, झोटिया, मनिका में
+
अपरिचित पास आओ
लंगड़े सूरज देखे
+
लंगड़ा हल
+
लंगड़े बैल
+
लंगड़ गोहू, लंगड़ चाउर उगाया
+
लाठियों की बौछार से बचकर
+
दिल्ली आया
+
  
थमी नहीं आग
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
बुझा नहीं उत्साह
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
उमड़ा प्यार फिर-फिर
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
बिलासपुर
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
रायगढ़
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
जशपुर
+
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
पहाड़ में सोने की नदी में
+
लुटते कोरबा देखे
+
छिनते खेत
+
खिंचती लंगोटी देखी
+
अंबिकापुर से जो लगाई छलाँग
+
तो गिरा दिल्ली में
+
  
फिर कुलबुलाया
+
सबमें अपनेपन की माया
प्यार का कीड़ा
+
अपने पन में जीवन आया  
ईंट के भट्ठों में दबे
+
</div>
हाथों को उठाया
+
</div></div>
आज़ाद किया
+
आधी रात पटका
+
बस-अड्डे पर ठंड में
+
चौपाल में सुना दर्द
+
और सिसकी
+
कोटला मैदान से वोट क्लब तक
+
नारे लगाता चला गया
+
`50 लाख बंधुआ के रहते
+
भारत माँ आज़ाद कैसे´
+
हारा-थका लौटकर
+
घर को आया
+
 
+
रवाँई गया पहाड़ पर चढ़ा
+
कच्ची पी बड़कोट पुरोला छाना
+
पांडवों से मिला
+
बहनों की खरीद देखी
+
हर बार दौड़कर
+
दिल्ली आया !
+
</pre>
+
<!----BOX CONTENT ENDS------>
+
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया