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23:52, 2 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
अनुरागमयी वरदानमयी
भारत जननी भारत माता!
मस्तक पर शोभित शतदल सा
यह हिमगिरि है, शोभा पाता,
नीलम-मोती की माला सा
गंगा-यमुना जल लहराता,
वात्सल्यमयी तू स्नेहमयी
भारत जननी भारत माता।
धानी दुकूल यह फूलों की-
बूटी से सज्जित फहराता,
पोंछने स्वेद की बूँदे ही
यह मलय पवन फिर-फिर आता।
सौंदर्यमयी श्रृंगारमयी
भारत जननी भारत माता।
सूरज की झारी औ किरणों
की गूँथी लेकर मालायें,
तेरे पग पूजन को आतीं
सागर लहरों की बालाएँ।
तू तपोमयी तू सिद्धमयी
भारत जननी भारत माता!