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"आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
 
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दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक!
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देखें क्या गुज़रती है क़तरे पे गुहर होने तक
  
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आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
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शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक
 
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11:16, 19 जून 2017 के समय का अवतरण

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर<ref>विजय, सुलझना</ref> होने तक

दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
देखें क्या गुज़रती है क़तरे पे गुहर होने तक

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब‌
दिल का क्या रंग करूं खून‍-ए-जिगर होने तक

हमने माना कि तगाफ़ुल<ref>उपेक्षा</ref> न करोगे लेकिन‌
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक

परतवे-खुर<ref>सूरज</ref> से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक

यक-नज़र बेश नहीं, फ़ुर्सते-हस्ती गाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर<ref>अंगारों का नृत्य</ref> होने तक

गम-ए-हस्ती<ref>जीवन का दुख</ref> का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक

शब्दार्थ
<references/>