"पोल-खोलक यंत्र / अशोक चक्रधर" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अशोक चक्रधर | |रचनाकार=अशोक चक्रधर | ||
}} | }} | ||
− | {{KKVID|v= | + | {{KKVID|v=ofdCpGZILyI}} |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | ठोकर खाकर हमने | + | <poem> |
− | जैसे ही यंत्र को उठाया, | + | ठोकर खाकर हमने |
− | मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई | + | जैसे ही यंत्र को उठाया, |
− | कुछ घरघराया। | + | मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई |
− | झटके से गरदन घुमाई, | + | कुछ घरघराया। |
− | पत्नी को देखा | + | झटके से गरदन घुमाई, |
− | अब यंत्र से | + | पत्नी को देखा |
− | पत्नी की आवाज़ आई- | + | अब यंत्र से |
− | मैं तो भर पाई! | + | पत्नी की आवाज़ आई- |
− | सड़क पर चलने तक का | + | मैं तो भर पाई! |
− | तरीक़ा नहीं आता, | + | सड़क पर चलने तक का |
− | कोई भी मैनर | + | तरीक़ा नहीं आता, |
− | या सली़क़ा नहीं आता। | + | कोई भी मैनर |
− | बीवी साथ है | + | या सली़क़ा नहीं आता। |
− | यह तक भूल जाते हैं, | + | बीवी साथ है |
− | और भिखमंगे नदीदों की तरह | + | यह तक भूल जाते हैं, |
− | चीज़ें उठाते हैं। | + | और भिखमंगे नदीदों की तरह |
− | ....इनसे | + | चीज़ें उठाते हैं। |
− | इनसे तो | + | ....इनसे |
− | वो पूना वाला | + | इनसे तो |
− | इंजीनियर ही ठीक था, | + | वो पूना वाला |
− | जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता | + | इंजीनियर ही ठीक था, |
− | इस तरह राह चलते | + | जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता |
− | ठोकर तो न खाता। | + | इस तरह राह चलते |
− | हमने सोचा- | + | ठोकर तो न खाता। |
− | यंत्र ख़तरनाक है! | + | हमने सोचा- |
− | और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है | + | यंत्र ख़तरनाक है! |
− | कि हमको मिला है, | + | और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है |
− | और मिलते ही | + | कि हमको मिला है, |
− | पूना वाला गुल खिला है। | + | और मिलते ही |
+ | पूना वाला गुल खिला है। | ||
− | और भी देखते हैं | + | और भी देखते हैं |
− | क्या-क्या गुल खिलते हैं? | + | क्या-क्या गुल खिलते हैं? |
− | अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं। | + | अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं। |
− | तो हमने एक दोस्त का | + | तो हमने एक दोस्त का |
− | दरवाज़ा खटखटाया | + | दरवाज़ा खटखटाया |
− | द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया, | + | द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया, |
− | दिमाग़ में होने लगी आहट | + | दिमाग़ में होने लगी आहट |
− | कुछ शूं-शूं | + | कुछ शूं-शूं |
− | कुछ घरघराहट। | + | कुछ घरघराहट। |
− | यंत्र से आवाज़ आई- | + | यंत्र से आवाज़ आई- |
− | अकेला ही आया है, | + | अकेला ही आया है, |
− | अपनी छप्पनछुरी, | + | अपनी छप्पनछुरी, |
− | गुलबदन को | + | गुलबदन को |
− | नहीं लाया है। | + | नहीं लाया है। |
− | प्रकट में बोला- | + | प्रकट में बोला- |
− | ओहो! | + | ओहो! |
− | कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है! | + | कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है! |
− | और सब ठीक है? | + | और सब ठीक है? |
− | मतलब, भाभीजी कैसी हैं? | + | मतलब, भाभीजी कैसी हैं? |
− | हमने कहा- | + | हमने कहा- |
− | भा...भी....जी | + | भा...भी....जी |
− | या छप्पनछुरी गुलबदन? | + | या छप्पनछुरी गुलबदन? |
− | वो बोला- | + | वो बोला- |
− | होश की दवा करो श्रीमन् | + | होश की दवा करो श्रीमन् |
− | क्या अण्ट-शण्ट बकते हो, | + | क्या अण्ट-शण्ट बकते हो, |
− | भाभीजी के लिए | + | भाभीजी के लिए |
− | कैसे-कैसे शब्दों का | + | कैसे-कैसे शब्दों का |
− | प्रयोग करते हो? | + | प्रयोग करते हो? |
− | हमने सोचा- | + | हमने सोचा- |
− | कैसा नट रहा है, | + | कैसा नट रहा है, |
− | अपनी सोची हुई बातों से ही | + | अपनी सोची हुई बातों से ही |
− | हट रहा है। | + | हट रहा है। |
− | सो फ़ैसला किया- | + | सो फ़ैसला किया- |
− | अब से बस सुन लिया करेंगे, | + | अब से बस सुन लिया करेंगे, |
− | कोई भी अच्छी या बुरी | + | कोई भी अच्छी या बुरी |
− | प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। | + | प्रतिक्रिया नहीं करेंगे। |
− | लेकिन अनुभव हुए नए-नए | + | लेकिन अनुभव हुए नए-नए |
− | एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए। | + | एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए। |
− | स्वयं नहीं निकले | + | स्वयं नहीं निकले |
− | वे आईं, | + | वे आईं, |
− | हाथ जोड़कर मुस्कुराईं- | + | हाथ जोड़कर मुस्कुराईं- |
− | मस्तक में भयंकर पीड़ा थी | + | मस्तक में भयंकर पीड़ा थी |
− | अभी-अभी सोए हैं। | + | अभी-अभी सोए हैं। |
− | यंत्र ने बताया- | + | यंत्र ने बताया- |
− | बिल्कुल नहीं सोए हैं | + | बिल्कुल नहीं सोए हैं |
− | न कहीं पीड़ा हो रही है, | + | न कहीं पीड़ा हो रही है, |
− | कुछ अनन्य मित्रों के साथ | + | कुछ अनन्य मित्रों के साथ |
− | द्यूत-क्रीड़ा हो रही है। | + | द्यूत-क्रीड़ा हो रही है। |
− | अगले दिन कॉलिज में | + | अगले दिन कॉलिज में |
− | बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में | + | बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में |
− | एक लड़की बैठी थी | + | एक लड़की बैठी थी |
− | खिड़की के पास में। | + | खिड़की के पास में। |
− | लग रहा था | + | लग रहा था |
− | हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है | + | हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है |
− | अपने मन में | + | अपने मन में |
− | कुछ और-ही-और | + | कुछ और-ही-और |
− | गुन रही है। | + | गुन रही है। |
− | तो यंत्र को ऑन कर | + | तो यंत्र को ऑन कर |
− | हमने जो देखा, | + | हमने जो देखा, |
− | खिंच गई हृदय पर | + | खिंच गई हृदय पर |
− | हर्ष की रेखा। | + | हर्ष की रेखा। |
− | यंत्र से आवाज़ आई- | + | यंत्र से आवाज़ आई- |
− | सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं, | + | सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं, |
− | लंबे और होते तो | + | लंबे और होते तो |
− | कितने स्मार्ट होते! | + | कितने स्मार्ट होते! |
− | एक सहपाठी | + | एक सहपाठी |
− | जो कॉपी पर उसका | + | जो कॉपी पर उसका |
− | चित्र बना रहा था, | + | चित्र बना रहा था, |
− | मन-ही-मन उसके साथ | + | मन-ही-मन उसके साथ |
− | पिकनिक मना रहा था। | + | पिकनिक मना रहा था। |
− | हमने सोचा- | + | हमने सोचा- |
− | फ़्रायड ने सारी बातें | + | फ़्रायड ने सारी बातें |
− | ठीक ही कही हैं, | + | ठीक ही कही हैं, |
− | कि इंसान की खोपड़ी में | + | कि इंसान की खोपड़ी में |
− | सैक्स के अलावा कुछ नहीं है। | + | सैक्स के अलावा कुछ नहीं है। |
− | कुछ बातें तो | + | कुछ बातें तो |
− | इतनी घिनौनी हैं, | + | इतनी घिनौनी हैं, |
− | जिन्हें बतलाने में | + | जिन्हें बतलाने में |
− | भाषाएं बौनी हैं। | + | भाषाएं बौनी हैं। |
− | एक बार होटल में | + | एक बार होटल में |
− | बेयरा पांच रुपये बीस पैसे | + | बेयरा पांच रुपये बीस पैसे |
− | वापस लाया | + | वापस लाया |
− | पांच का नोट हमने उठाया, | + | पांच का नोट हमने उठाया, |
− | बीस पैसे टिप में डाले | + | बीस पैसे टिप में डाले |
− | यंत्र से आवाज़ आई- | + | यंत्र से आवाज़ आई- |
− | चले आते हैं | + | चले आते हैं |
− | मनहूस, कंजड़ कहीं के साले, | + | मनहूस, कंजड़ कहीं के साले, |
− | टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले। | + | टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले। |
− | हमने सोचा- ग़नीमत है | + | हमने सोचा- ग़नीमत है |
− | कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले। | + | कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले। |
− | ख़ैर साहब! | + | ख़ैर साहब! |
− | इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं | + | इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं |
− | कभी ज़हर तो कभी | + | कभी ज़हर तो कभी |
− | अमृत के घूंट पिलाए हैं। | + | अमृत के घूंट पिलाए हैं। |
− | - वह जो लिपस्टिक और पाउडर में | + | - वह जो लिपस्टिक और पाउडर में |
− | पुती हुई लड़की है | + | पुती हुई लड़की है |
− | हमें मालूम है | + | हमें मालूम है |
− | उसके घर में कितनी कड़की है! | + | उसके घर में कितनी कड़की है! |
− | - और वह जो पनवाड़ी है | + | - और वह जो पनवाड़ी है |
− | यंत्र ने बता दिया | + | यंत्र ने बता दिया |
− | कि हमारे पान में | + | कि हमारे पान में |
− | उसकी बीवी की झूठी सुपारी है। | + | उसकी बीवी की झूठी सुपारी है। |
− | एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी | + | एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी |
− | अपना यंत्र लाए थे | + | अपना यंत्र लाए थे |
− | हमें सब पता था | + | हमें सब पता था |
− | कौन-कौन कवि | + | कौन-कौन कवि |
− | क्या-क्या करके आए थे। | + | क्या-क्या करके आए थे। |
− | ऊपर से वाह-वाह | + | ऊपर से वाह-वाह |
− | दिल में कराह | + | दिल में कराह |
− | अगला हूट हो जाए पूरी चाह। | + | अगला हूट हो जाए पूरी चाह। |
− | दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था, | + | दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था, |
− | कुछ के सिरों में सिर्फ | + | कुछ के सिरों में सिर्फ |
− | संयोजक का लिफ़ाफ़ा था। | + | संयोजक का लिफ़ाफ़ा था। |
− | ख़ैर साहब, | + | ख़ैर साहब, |
− | इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया | + | इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया |
− | और मेरे काव्य-पाठ के दौरान | + | और मेरे काव्य-पाठ के दौरान |
− | कई कवि मित्र | + | कई कवि मित्र |
− | एक साथ सोच रहे थे- | + | एक साथ सोच रहे थे- |
− | अरे ये तो जम गया! | + | अरे ये तो जम गया! |
10:50, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
ठोकर खाकर हमने
जैसे ही यंत्र को उठाया,
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
कुछ घरघराया।
झटके से गरदन घुमाई,
पत्नी को देखा
अब यंत्र से
पत्नी की आवाज़ आई-
मैं तो भर पाई!
सड़क पर चलने तक का
तरीक़ा नहीं आता,
कोई भी मैनर
या सली़क़ा नहीं आता।
बीवी साथ है
यह तक भूल जाते हैं,
और भिखमंगे नदीदों की तरह
चीज़ें उठाते हैं।
....इनसे
इनसे तो
वो पूना वाला
इंजीनियर ही ठीक था,
जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता
इस तरह राह चलते
ठोकर तो न खाता।
हमने सोचा-
यंत्र ख़तरनाक है!
और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है
कि हमको मिला है,
और मिलते ही
पूना वाला गुल खिला है।
और भी देखते हैं
क्या-क्या गुल खिलते हैं?
अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।
तो हमने एक दोस्त का
दरवाज़ा खटखटाया
द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया,
दिमाग़ में होने लगी आहट
कुछ शूं-शूं
कुछ घरघराहट।
यंत्र से आवाज़ आई-
अकेला ही आया है,
अपनी छप्पनछुरी,
गुलबदन को
नहीं लाया है।
प्रकट में बोला-
ओहो!
कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है!
और सब ठीक है?
मतलब, भाभीजी कैसी हैं?
हमने कहा-
भा...भी....जी
या छप्पनछुरी गुलबदन?
वो बोला-
होश की दवा करो श्रीमन्
क्या अण्ट-शण्ट बकते हो,
भाभीजी के लिए
कैसे-कैसे शब्दों का
प्रयोग करते हो?
हमने सोचा-
कैसा नट रहा है,
अपनी सोची हुई बातों से ही
हट रहा है।
सो फ़ैसला किया-
अब से बस सुन लिया करेंगे,
कोई भी अच्छी या बुरी
प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।
लेकिन अनुभव हुए नए-नए
एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए।
स्वयं नहीं निकले
वे आईं,
हाथ जोड़कर मुस्कुराईं-
मस्तक में भयंकर पीड़ा थी
अभी-अभी सोए हैं।
यंत्र ने बताया-
बिल्कुल नहीं सोए हैं
न कहीं पीड़ा हो रही है,
कुछ अनन्य मित्रों के साथ
द्यूत-क्रीड़ा हो रही है।
अगले दिन कॉलिज में
बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में
एक लड़की बैठी थी
खिड़की के पास में।
लग रहा था
हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है
अपने मन में
कुछ और-ही-और
गुन रही है।
तो यंत्र को ऑन कर
हमने जो देखा,
खिंच गई हृदय पर
हर्ष की रेखा।
यंत्र से आवाज़ आई-
सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,
लंबे और होते तो
कितने स्मार्ट होते!
एक सहपाठी
जो कॉपी पर उसका
चित्र बना रहा था,
मन-ही-मन उसके साथ
पिकनिक मना रहा था।
हमने सोचा-
फ़्रायड ने सारी बातें
ठीक ही कही हैं,
कि इंसान की खोपड़ी में
सैक्स के अलावा कुछ नहीं है।
कुछ बातें तो
इतनी घिनौनी हैं,
जिन्हें बतलाने में
भाषाएं बौनी हैं।
एक बार होटल में
बेयरा पांच रुपये बीस पैसे
वापस लाया
पांच का नोट हमने उठाया,
बीस पैसे टिप में डाले
यंत्र से आवाज़ आई-
चले आते हैं
मनहूस, कंजड़ कहीं के साले,
टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।
हमने सोचा- ग़नीमत है
कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।
ख़ैर साहब!
इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं
कभी ज़हर तो कभी
अमृत के घूंट पिलाए हैं।
- वह जो लिपस्टिक और पाउडर में
पुती हुई लड़की है
हमें मालूम है
उसके घर में कितनी कड़की है!
- और वह जो पनवाड़ी है
यंत्र ने बता दिया
कि हमारे पान में
उसकी बीवी की झूठी सुपारी है।
एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी
अपना यंत्र लाए थे
हमें सब पता था
कौन-कौन कवि
क्या-क्या करके आए थे।
ऊपर से वाह-वाह
दिल में कराह
अगला हूट हो जाए पूरी चाह।
दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था,
कुछ के सिरों में सिर्फ
संयोजक का लिफ़ाफ़ा था।
ख़ैर साहब,
इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया
और मेरे काव्य-पाठ के दौरान
कई कवि मित्र
एक साथ सोच रहे थे-
अरे ये तो जम गया!