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"अँधियाली घाटी में / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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::जग सहसा, ज्योतित कर देता
 
::जग सहसा, ज्योतित कर देता
::मानस के चिर गुह्य कुंज-बन!
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13:23, 10 जून 2010 के समय का अवतरण

अँधियाली घाटी में सहसा
हरित स्फुलिंग सदृश फूटा वह!
वह उड़ता दीपक निशीथ का,--
तारा-सा आकर टूटा वह!
जीवन के इस अन्धकार में
मानव-आत्मा का प्रकाश-कण
जग सहसा, ज्योतित कर देता
मानस के चिर गुह्य कुंज-वन!

रचनाकाल: मई’१९३५