भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:माखनलाल चतुर्वेदी]]
+
|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी  
+
|संग्रह=
~*~*~*~*~*~*~*~
+
}}{{KKVID|v=XCXTB4atxnc}}
 
+
{{KKAnthologyDeshBkthi}}
चाह नहीं मैं सुरबाला के
+
{{KKCatKavita}}
 
+
{{KKPrasiddhRachna}}
गहनों में गूंथा जाऊँ,
+
{{KKCatBaalKavita}}
 
+
<poem>
चाह नहीं प्रेमी-माला में
+
चाह नहीं, मैं सुरबाला के  
 
+
गहनों में गूँथा जाऊँ,
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
+
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
 
+
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
+
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
 
+
हे हरि डाला जाऊँ,
पर, है हरि, डाला जाऊँ
+
चाह नहीं देवों के सिर पर
 
+
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
चाह नहीं, देवों के शिर पर,
+
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
 
+
उस पथ पर देना तुम फेंक!
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!
+
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
 
+
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
+
</poem>
 
+
उस पथ पर देना तुम फेंक,
+
 
+
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
+
 
+
जिस पथ जावें वीर अनेक।
+

16:28, 20 मई 2020 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!