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02:03, 26 जून 2010 के समय का अवतरण
हिलती कहीं
नीम की टहनी !
भूल गईं वे बातें कब की
सब जो तुम को कहनी ।
गन्ध वृक्ष से छूटी-छूटी
चलीं हवाएँ कितनी तीखी
मार रही हैं कैसे ताने
कहती हैं-
कैसी-अनकहनी !
हिलती कहीं
नीम की ट-ह-नी !