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+ | आँखों में सशंक जिज्ञासा | ||
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
रचनाकार: त्रिलोचन
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ
आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ
सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया