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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : जो मिरा इक महबूब है<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अरुणा राय]]</td>
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जो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए क्या ख़ूब है
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आँखें उसकी काली हँसी, दो डग चले बस डूब है
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पकड़ उसकी सख़्त है  पर छूना उसका दूब है
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हैं पाँव उसके चंचल बहुत, रूकें तो पाहन बाख़ूब हैं
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जो मिरा इक महबूब है । मत पूछिए क्या ख़ूब है....
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया