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"हमसे तन्हाई के मारे नहीं देखे जाते / फ़रहत शहज़ाद" के अवतरणों में अंतर

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माहे-कामिल<ref>पूरा चाँद</ref> भी जिसे देख के सजदे में गिरे<ref>सम्मान में झुके</ref>
 
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08:57, 17 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


हमसे तन्हाई के मारे नहीं देखे जाते
बिन तेरे चाँद-सितारे नहीं देखे जाते

हारना दिन का है मंज़ूर मगर जाने-अज़ीज़
हमसे गेसू<ref>केश</ref> तेरे हारे नहीं देखे जाते

जिनकी आहट से बँधी थी मेरे दिल की धड़कन
उन निगाहों के इशारे नहीं देखे जाते

माहे-कामिल<ref>पूरा चाँद</ref> भी जिसे देख के सजदे में गिरे<ref>सम्मान में झुके</ref>
आँख में उसकी सितारे<ref>चमकते हुए आँसू</ref> नहीं देखे जाते
 

शब्दार्थ
<references/>