भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मिसाल इसकी कहाँ है / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: रचनाकार: जावेद अख़्तर Category:कविताएँ Category:गज़ल Category:जावेद अख़्तर ~*~*~*~*~*~*~*~*...) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | रचनाकार | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार= जावेद अख़्तर | ||
+ | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] | ||
− | + | <poem> | |
+ | मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में | ||
+ | कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में | ||
− | + | वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे | |
+ | अजीब बात हुई है उसे भुलाने में | ||
− | + | जो मुंतज़िर<ref>इंतज़ार में</ref> न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा | |
− | कि | + | कि हमने देर लगा दी पलट के आने में |
− | + | लतीफ़<ref>मज़ेदार</ref> था वो तख़य्युल<ref>सोच</ref> से, ख़्वाब से नाज़ुक | |
− | + | गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में | |
− | + | समझ लिया था कभी एक सराब<ref>मरीचिका</ref> को दरिया | |
− | + | पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में | |
− | + | झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा | |
− | + | ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में | |
− | + | </poem> | |
− | + | {{KKMeaning}} | |
− | + | ||
− | + | ||
− | झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा | + | |
− | ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में < | + |
22:24, 30 मार्च 2010 के समय का अवतरण
मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर<ref>इंतज़ार में</ref> न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़<ref>मज़ेदार</ref> था वो तख़य्युल<ref>सोच</ref> से, ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में
समझ लिया था कभी एक सराब<ref>मरीचिका</ref> को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में
शब्दार्थ
<references/>