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"हिमालय और हम / गोपाल सिंह नेपाली" के अवतरणों में अंतर

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गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।
 
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इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही।
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इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही ।
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अंबर में सिर, पाताल चरण
 
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मन इसका गंगा का बचपन
 
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तन वरण-वरण मुख निरावरण
 
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इसकी छाया में जो भी है, वह मस्‍तक नहीं झुकाता है ।
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ग‍िरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
  
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इन शिखरों की माया ऐसी
 
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जैसे प्रभात, संध्‍या वैसी
 
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अमरों को फिर चिंता कैसी ?
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इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्‍त अपनाता है ।
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हर संध्‍या को इसकी छाया सागर-सी लंबी होती है।
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हर सुबह वही फिर गंगा की चादर-सी लंबी होती है।।
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इसकी छाया में रंग गहरा
 
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है देश हरा, प्रदेश हरा
 
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हर मौसम है, संदेश भरा
 
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इसका पद-तल छूने वाला वेदों की गाथा गाता है ।
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गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।
  
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कोई क्‍या हमको ललकारे
 
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हम कभी न हिंसा से हारे
 
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दु:ख देकर हमको क्‍या मारे
 
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गंगा का जल जो भी पी ले, वह दु:ख में भी मुसकाता है ।
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जब-जब जनता को विपदा दी
 
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तब-तब निकले लाखों गाँधी
 
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तलवारों-सी टूटी आँधी
 
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इसकी छाया में तूफ़ान, चिरागों से शरमाता है।
 
इसकी छाया में तूफ़ान, चिरागों से शरमाता है।
 
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गिरिराज, हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।
गिरिराज, हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है।
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22:07, 29 अक्टूबर 2010 के समय का अवतरण

गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।

(1)
इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही ।
पर्वत-पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यही ।।
अंबर में सिर, पाताल चरण
मन इसका गंगा का बचपन
तन वरण-वरण मुख निरावरण
इसकी छाया में जो भी है, वह मस्‍तक नहीं झुकाता है ।
ग‍िरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।

(2)

अरूणोदय की पहली लाली इसको ही चूम निखर जाती ।
फिर संध्‍या की अंतिम लाली इस पर ही झूम बिखर जाती ।।
इन शिखरों की माया ऐसी
जैसे प्रभात, संध्‍या वैसी
अमरों को फिर चिंता कैसी ?
इस धरती का हर लाल खुशी से उदय-अस्‍त अपनाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।

(3)

हर संध्‍या को इसकी छाया सागर-सी लंबी होती है ।
हर सुबह वही फिर गंगा की चादर-सी लंबी होती है ।।
इसकी छाया में रंग गहरा
है देश हरा, प्रदेश हरा
हर मौसम है, संदेश भरा
इसका पद-तल छूने वाला वेदों की गाथा गाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।

(4)

जैसा यह अटल, अडिग-अविचल, वैसे ही हैं भारतवासी ।
है अमर हिमालय धरती पर, तो भारतवासी अविनाशी ।।
कोई क्‍या हमको ललकारे
हम कभी न हिंसा से हारे
दु:ख देकर हमको क्‍या मारे
गंगा का जल जो भी पी ले, वह दु:ख में भी मुसकाता है ।
गिरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।।

(5)

टकराते हैं इससे बादल, तो खुद पानी हो जाते हैं ।
तूफ़ान चले आते हैं, तो ठोकर खाकर सो जाते हैं ।
जब-जब जनता को विपदा दी
तब-तब निकले लाखों गाँधी
तलवारों-सी टूटी आँधी
इसकी छाया में तूफ़ान, चिरागों से शरमाता है।
गिरिराज, हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।