भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मरने से क्या डरना / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: नियम प्रकृति का अटल, मिटे न भाग्य लकीर । आया है सो जाएगा राजा रंक फ…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | नियम प्रकृति का अटल, मिटे न भाग्य | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
− | आया है सो जाएगा राजा रंक | + | |रचनाकार=काका हाथरसी |
− | + | |अनुवादक= | |
− | राजा रंक फ़कीर चलाओ जीवन | + | |संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी |
− | + | }} | |
− | मरना तो निश्चित है फिर क्या डरना | + | {{KKCatKavita}} |
− | + | <poem> | |
− | रोओ पीटो, किंतु मौत को रहम न | + | नियम प्रकृति का अटल, मिटे न भाग्य लकीर। |
− | + | आया है सो जाएगा राजा रंक फ़कीर॥ | |
− | नहीं जाय, यमदूत ज़बरदस्ती ले | + | राजा रंक फ़कीर चलाओ जीवन नैय्या। |
− | + | मरना तो निश्चित है फिर क्या डरना भैय्या॥ | |
− | जो सच्चा इंसान है उसे देखिये | + | रोओ पीटो, किंतु मौत को रहम न आए। |
− | + | नहीं जाय, यमदूत ज़बरदस्ती ले जाए॥ | |
− | मरते दम तक वह कभी करे न | + | जो सच्चा इंसान है उसे देखिये आप। |
− | + | मरते दम तक वह कभी करे न पश्चाताप॥ | |
− | करे न पश्चाताप, ग़रीबी सहन | + | करे न पश्चाताप, ग़रीबी सहन करेगा। |
− | + | लेकिन अपने सत्यधर्म से नहीं हटेगा॥ | |
− | लेकिन अपने सत्यधर्म से नहीं | + | अंत समय में ऐसा संत मोक्ष पद पाए। |
− | + | सत्यम शिवम सुन्दरम में वह लय हो जाए॥ | |
− | अंत समय में ऐसा संत मोक्ष पद | + | जीवन में और मौत में पल भर का है फ़र्क। |
− | + | हार गए सब ज्योतिषी फेल हो गए तर्क॥ | |
− | सत्यम शिवम सुन्दरम में वह लय हो | + | फेल हो गए तर्क, उम्र लम्बी बतलाई। |
− | + | हार्ट फेल हो गया दवा कुछ काम न आई॥ | |
− | जीवन में और मौत में पल भर का है | + | जीवन और मौत में इतना फ़र्क जानिए। |
− | + | साँस चले जीवन, रुक जाए मौत मानिए॥ | |
− | हार गए सब ज्योतिषी फेल हो गए | + | </poem> |
− | + | ||
− | फेल हो गए तर्क, उम्र लम्बी | + | |
− | + | ||
− | हार्ट फेल हो गया दवा कुछ काम न | + | |
− | + | ||
− | जीवन और मौत में इतना फ़र्क | + | |
− | + | ||
− | साँस चले जीवन, रुक जाए मौत | + |
12:17, 18 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
नियम प्रकृति का अटल, मिटे न भाग्य लकीर।
आया है सो जाएगा राजा रंक फ़कीर॥
राजा रंक फ़कीर चलाओ जीवन नैय्या।
मरना तो निश्चित है फिर क्या डरना भैय्या॥
रोओ पीटो, किंतु मौत को रहम न आए।
नहीं जाय, यमदूत ज़बरदस्ती ले जाए॥
जो सच्चा इंसान है उसे देखिये आप।
मरते दम तक वह कभी करे न पश्चाताप॥
करे न पश्चाताप, ग़रीबी सहन करेगा।
लेकिन अपने सत्यधर्म से नहीं हटेगा॥
अंत समय में ऐसा संत मोक्ष पद पाए।
सत्यम शिवम सुन्दरम में वह लय हो जाए॥
जीवन में और मौत में पल भर का है फ़र्क।
हार गए सब ज्योतिषी फेल हो गए तर्क॥
फेल हो गए तर्क, उम्र लम्बी बतलाई।
हार्ट फेल हो गया दवा कुछ काम न आई॥
जीवन और मौत में इतना फ़र्क जानिए।
साँस चले जीवन, रुक जाए मौत मानिए॥