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"माँ / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

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  तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन
 
  तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन
 
  कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
 
  कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
 
  कोई नहीं सृष्टि में तुमसा
 
  कोई नहीं सृष्टि में तुमसा
  माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो
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  माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।
  
 
  ब्रह्मा तो केवल रचता है
 
  ब्रह्मा तो केवल रचता है
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  शिव हरते तो सब हर लेते
 
  शिव हरते तो सब हर लेते
 
  तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
 
  तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
  किसे सामने खड़ा करूं मैं
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  किसे सामने खड़ा करूँ मैं
  और कहूं फिर तुम ऐंसी हो।।
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  और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
  
 
  ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे
 
  ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे
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  ममता बिन सब रूखे रूखे
 
  ममता बिन सब रूखे रूखे
 
  पूजा करे सताये कोई
 
  पूजा करे सताये कोई
  सब की सदा तुम हितैषी हो।।
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  सब की सदा तुम हितैषी हो।
  
 
  कितनी गहरी है अद् भुत सी
 
  कितनी गहरी है अद् भुत सी
पंक्ति 23: पंक्ति 30:
 
  तेरे आगे करुणा सागर
 
  तेरे आगे करुणा सागर
 
  जाकी रहि भावना जैसी
 
  जाकी रहि भावना जैसी
  मूरत देखी तिन्ह तैंसी हो।।
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  मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
  
 
  मेरी लघु आकुलता से ही
 
  मेरी लघु आकुलता से ही
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  तुम भूखी ही सो जाती हो
 
  तुम भूखी ही सो जाती हो
 
  सब जग बदला मैं भी बदला
 
  सब जग बदला मैं भी बदला
  तुम तो वैसी की वैसी हो।।
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  तुम तो वैसी की वैसी हो।
  
 
  तुम से तन मन जीवन पाया
 
  तुम से तन मन जीवन पाया
पंक्ति 38: पंक्ति 45:
 
  क्यों करती हो क्षमा हमेशा
 
  क्यों करती हो क्षमा हमेशा
 
  तुम भी तो जाने कैसी हो
 
  तुम भी तो जाने कैसी हो
  माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।।
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  माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।
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</poem>

16:33, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

 
 तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन
 कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
 कोई नहीं सृष्टि में तुमसा
 माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।

 ब्रह्मा तो केवल रचता है
 तुम तो पालन भी करती हो
 शिव हरते तो सब हर लेते
 तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
 किसे सामने खड़ा करूँ मैं
 और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।

 ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे
 सारे देव भक्ति के भूखे
 लगते हैं तेरी तुलना में
 ममता बिन सब रूखे रूखे
 पूजा करे सताये कोई
 सब की सदा तुम हितैषी हो।

 कितनी गहरी है अद् भुत सी
 तेरी यह करुणा की गागर
 जाने क्यों छोटा लगता है
 तेरे आगे करुणा सागर
 जाकी रहि भावना जैसी
 मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।

 मेरी लघु आकुलता से ही
 कितनी व्याकुल हो जाती हो
 मुझे तृप्त करने के सुख में
 तुम भूखी ही सो जाती हो
 सब जग बदला मैं भी बदला
 तुम तो वैसी की वैसी हो।

 तुम से तन मन जीवन पाया
 तुमने ही चलना सिखलाया
 पर देखो मेरी कृतघ्नता
 काम तुम्हारे कभी नआया
 क्यों करती हो क्षमा हमेशा
 तुम भी तो जाने कैसी हो
 माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।