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"क्या करें? / गिरीश चंद्र तिबाडी 'गिर्दा'" के अवतरणों में अंतर
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− | खुद निशाने | + | खुद निशाने पे पड़ी आ खोपड़ी तो क्या करें? |
खाम-खाँ ही ताड़ तिल का कर दिया करते हैं लोग, | खाम-खाँ ही ताड़ तिल का कर दिया करते हैं लोग, |
12:05, 27 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
8 अक्टूबर 1983 को नैनीताल में हुई पुलिस फायरिंग के बाद
हालाते सरकार ऐसी हो पड़ी तो क्या करें?
हो गई लाजिम जलानी झोपड़ी तो क्या करें?
हादसा बस यों कि बच्चों में उछाली कंकरी,
वो पलट के गोलाबारी हो गई तो क्या करें?
गोलियाँ कोई निशाना बाँध कर दागी थीं क्या?
खुद निशाने पे पड़ी आ खोपड़ी तो क्या करें?
खाम-खाँ ही ताड़ तिल का कर दिया करते हैं लोग,
वो पुलिस है, उससे हत्या हो पड़ी तो क्या करें?
कांड पर संसद तलक ने शोक प्रकट कर दिया,
जनता अपनी लाश बाबत रो पड़ी तो क्या करें?
आप इतनी बात लेकर बेवजह नाशाद हैं,
रेजगारी जेब की थी, खो पड़ी तो क्या करें?
आप जैसी दूरदृष्टि, आप जैसे हौंसले,
देश की आत्मा गर सो पड़ी तो क्या करें?