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<table width=100% style="background:transparent">
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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : भारत का फ़िलीस्तीन<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अंजली]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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यह जगह क्या युद्ध स्थल है
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या वध स्थल है
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सिर पर निशाना साधे सेना के इतने जवान
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
इस स्थल पर क्यों हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
क्या यह हमारा ही देश है
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या दुश्मन देश पर कब्जा है
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खून से लथपथ बच्चे महिलाएँ युवा बूढ़े
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<div style="text-align: center;">
सब उठाये हुए हैं पत्थर
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
इतना गुस्सा
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
मौत के खिलाफ़ इतनी बदसलूकी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
इस क़दर बेफिक्री
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अपरिचित पास आओ
क्या यह फिलीस्तीन है
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या लौट आया है 1942 का मंज़र
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समय समाज के साथ पकता है
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
और समाज बड़ा होता है
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
इंसानी जज़्बों के साथ
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
उस मृत बच्चे की आँख की चमक देखो
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
धरती की शक्ल बदल रही है
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर का समय बीत चुका है
+
सबमें अपनेपन की माया
और तुम्हारे निपटा देने के तरीके से
+
अपने पन में जीवन आया
बन रहे हैं दलदल
+
</div>
बन रही हैं गुप्त कब्रें
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</div></div>
और श्मशान घाट
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आग और मिट्टी के इस खेल में
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क्या दफ़्न हो पायेगा एक पूरा देश
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उस देश का पूरा जन
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या गुप्त फाइलों में छुपा ली जाएगी
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जन के देश होने की हक़ीक़त
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देश के आज़ाद होने की ललक
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व धरती के लहूलुहान होने की सूरत
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मैं किसी मक्के के खेत
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या ताल की मछलियों के बारे में नहीं
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कश्मीर की बात कर रहा हूँ
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जी हाँ, आज़ादी के आइने में देखते हुए
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इस समय कश्मीर की बात कर रहा हूँ </pre>
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<!----BOX CONTENT ENDS------>
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</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया