भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देखा हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
देखा हुआ सा कुछ है
 +
:तो सोचा हुआ सा कुछ
 +
हर वक़्त मेरे साथ है
 +
:उलझा हुआ सा कुछ
  
देखा हुआ सा कुछ है <br>
+
होता है यूँ भी, रास्ता
:तो सोचा हुआ सा कुछ <br>
+
:खुलता नहीं कहीं
हर वक़्त मेरे साथ है<br>
+
जंगल-सा फैल जाता है
:उलझा हुआ सा कुछ<br><br>
+
:खोया हुआ सा कुछ
होता है यूँ भी रास्ता<br>
+
:खुलता नहीं कहीं<br>
+
जंगल-सा फैल जाता है<br>
+
:खोया हुआ सा कुछ<br><br>
+
साहिल की गीली रेत पर<br>
+
:बच्चों के खेल-सा  <br> 
+
हर लम्हा मुझ में बनता <br>
+
:बिखरता हुआ सा कुछ <br><br>
+
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया <br>
+
:कुछ इस तरह <br>
+
हर शय से मुस्कुराता है <br>
+
:रोता हुआ सा कुछ <br><br>
+
धुँधली-सी एक याद किसी <br>
+
:क़ब्र का दिया <br>
+
और! मेरे आस-पास <br>
+
:चमकता हुआ सा कुछ<br><br>
+
  
कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है<br>
+
साहिल की गीली रेत पर
 +
:बच्चों के खेल-सा   
 +
हर लम्हा मुझ में बनता
 +
:बिखरता हुआ सा कुछ
 +
 
 +
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया
 +
:कुछ इस तरह
 +
हर शय से मुस्कुराता है
 +
:रोता हुआ सा कुछ
 +
 
 +
धुँधली-सी एक याद किसी
 +
:क़ब्र का दिया
 +
और! मेरे आस-पास
 +
:चमकता हुआ सा कुछ
 +
 
 +
कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
 
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है
 
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है
 +
</poem>

03:09, 10 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

देखा हुआ सा कुछ है
तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है
उलझा हुआ सा कुछ

होता है यूँ भी, रास्ता
खुलता नहीं कहीं
जंगल-सा फैल जाता है
खोया हुआ सा कुछ

साहिल की गीली रेत पर
बच्चों के खेल-सा
हर लम्हा मुझ में बनता
बिखरता हुआ सा कुछ

फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया
कुछ इस तरह
हर शय से मुस्कुराता है
रोता हुआ सा कुछ

धुँधली-सी एक याद किसी
क़ब्र का दिया
और! मेरे आस-पास
चमकता हुआ सा कुछ

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है