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12:27, 13 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
मनचंदा बानी के नाम
कोई बिस्तर नया सा ।
कि अब हो घर नया सा ।
नए से फूल लब पर
दिलों में डर नया सा ।
नई सी एक उलझन
सरों में शर<ref>फ़साद</ref> नया सा ।
नई सी कोई आँधी
कोई लश्कर नया सा ।
उतारो मेरे दिल में
कोई खंजर नया सा ।
यही वो आदमी है
मगर है सर नया सा ।
दिखाए अब तमाशा
वो बाज़ीगर नया सा ।
यकायक ये हुआ क्या
हर इक मंज़र नया सा ।
नया सा फूल मुखड़ा
परी पैकर<ref>परी का रूप</ref> नया सा ।
नई सी सारी रस्में
ज़र-ओ-ज़ेवर नया सा ।
सजा दे चाँद कोई
सर-ए-बिस्तर नया सा ।
अरे ओ शाम-ए-फुरक़त<ref>विरह की शाम</ref>
कोई पत्थर नया सा ।
लगा था वो भी 'अजमल'
बस इक पल भर नया सा ।
शब्दार्थ
<references/>