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है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये | है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये | ||
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राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे | राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे | ||
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे | राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे | ||
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे | छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे | ||
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10:32, 10 मई 2014 के समय का अवतरण
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राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये
धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन
घर ना जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे