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− | + | दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब | |
− | दुनिया की महफ़िलों से | + | क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो |
− | क्या लुत्फ़ | + | शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँढता है मेरा |
− | + | ऐसा सुकूत जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो | |
− | शोरिश | + | मरता हूँ ख़ामुशी पर ये आरज़ू है मेरी |
− | ऐसा | + | दामन में कोह के इक छोटा सा झोंपड़ा हो |
− | + | आज़ाद फ़िक्र से हूँ उज़्लत में दिन गुज़ारूँ | |
− | मरता हूँ ख़ामुशी पर | + | दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो |
− | दामन में कोह | + | लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में |
− | + | चश्मे की शोरिशों में बाजा सा बज रहा हो | |
− | हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े | + | गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का |
− | शरमाए | + | साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो |
− | + | हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े का हो बिछौना | |
− | मानूस | + | शरमाए जिस से जल्वत ख़ल्वत में वो अदा हो |
− | नन्हे | + | मानूस इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल |
− | + | नन्हे से दिल में उस के खटका न कुछ मिरा हो | |
− | आग़ोश | + | सफ़ बाँधे दोनों जानिब बूटे हरे हरे हों |
− | फिर | + | नद्दी का साफ़ पानी तस्वीर ले रहा हो |
− | + | हो दिल-फ़रेब ऐसा कोहसार का नज़ारा | |
− | पानी को छू रही हो झुक | + | पानी भी मौज बन कर उठ उठ के देखता हो |
− | जैसे हसीन | + | आग़ोश में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा |
− | + | फिर फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो | |
− | फूलों को आए जिस दम शबनम | + | पानी को छू रही हो झुक झुक के गुल की टहनी |
− | रोना | + | जैसे हसीन कोई आईना देखता हो |
− | + | मेहंदी लगाए सूरज जब शाम की दुल्हन को | |
− | हर दर्दमंद दिल को रोना | + | सुर्ख़ी लिए सुनहरी हर फूल की क़बा हो |
− | बेहोश जो पड़े हैं | + | रातों को चलने वाले रह जाएँ थक के जिस दम |
− | + | उम्मीद उन की मेरा टूटा हुआ दिया हो | |
− | + | बिजली चमक के उन को कुटिया मिरी दिखा दे | |
− | + | जब आसमाँ पे हर सू बादल घिरा हुआ हो | |
+ | पिछले पहर की कोयल वो सुब्ह की मोअज़्ज़िन | ||
+ | मैं उस का हम-नवा हूँ वो मेरी हम-नवा हो | ||
+ | कानों पे हो न मेरे दैर ओ हरम का एहसाँ | ||
+ | रौज़न ही झोंपड़ी का मुझ को सहर-नुमा हो | ||
+ | फूलों को आए जिस दम शबनम वज़ू कराने | ||
+ | रोना मिरा वज़ू हो नाला मिरी दुआ हो | ||
+ | इस ख़ामुशी में जाएँ इतने बुलंद नाले | ||
+ | तारों के क़ाफ़िले को मेरी सदा दिरा हो | ||
+ | हर दर्दमंद दिल को रोना मिरा रुला दे | ||
+ | बेहोश जो पड़े हैं शायद उन्हें जगा दे | ||
+ | </poem> |
17:58, 8 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
दुनिया की महफ़िलों से उक्ता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
शोरिश से भागता हूँ दिल ढूँढता है मेरा
ऐसा सुकूत जिस पर तक़रीर भी फ़िदा हो
मरता हूँ ख़ामुशी पर ये आरज़ू है मेरी
दामन में कोह के इक छोटा सा झोंपड़ा हो
आज़ाद फ़िक्र से हूँ उज़्लत में दिन गुज़ारूँ
दुनिया के ग़म का दिल से काँटा निकल गया हो
लज़्ज़त सरोद की हो चिड़ियों के चहचहों में
चश्मे की शोरिशों में बाजा सा बज रहा हो
गुल की कली चटक कर पैग़ाम दे किसी का
साग़र ज़रा सा गोया मुझ को जहाँ-नुमा हो
हो हाथ का सिरहाना सब्ज़े का हो बिछौना
शरमाए जिस से जल्वत ख़ल्वत में वो अदा हो
मानूस इस क़दर हो सूरत से मेरी बुलबुल
नन्हे से दिल में उस के खटका न कुछ मिरा हो
सफ़ बाँधे दोनों जानिब बूटे हरे हरे हों
नद्दी का साफ़ पानी तस्वीर ले रहा हो
हो दिल-फ़रेब ऐसा कोहसार का नज़ारा
पानी भी मौज बन कर उठ उठ के देखता हो
आग़ोश में ज़मीं की सोया हुआ हो सब्ज़ा
फिर फिर के झाड़ियों में पानी चमक रहा हो
पानी को छू रही हो झुक झुक के गुल की टहनी
जैसे हसीन कोई आईना देखता हो
मेहंदी लगाए सूरज जब शाम की दुल्हन को
सुर्ख़ी लिए सुनहरी हर फूल की क़बा हो
रातों को चलने वाले रह जाएँ थक के जिस दम
उम्मीद उन की मेरा टूटा हुआ दिया हो
बिजली चमक के उन को कुटिया मिरी दिखा दे
जब आसमाँ पे हर सू बादल घिरा हुआ हो
पिछले पहर की कोयल वो सुब्ह की मोअज़्ज़िन
मैं उस का हम-नवा हूँ वो मेरी हम-नवा हो
कानों पे हो न मेरे दैर ओ हरम का एहसाँ
रौज़न ही झोंपड़ी का मुझ को सहर-नुमा हो
फूलों को आए जिस दम शबनम वज़ू कराने
रोना मिरा वज़ू हो नाला मिरी दुआ हो
इस ख़ामुशी में जाएँ इतने बुलंद नाले
तारों के क़ाफ़िले को मेरी सदा दिरा हो
हर दर्दमंद दिल को रोना मिरा रुला दे
बेहोश जो पड़े हैं शायद उन्हें जगा दे