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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : तुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[ख़्वाजा मीर दर्द]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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तुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले
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किसलिए आये थे हम क्या कर चले 
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ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
हम तो इस जीने के हाथों मर चले
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
क्या हमें काम इन गुलों से ऐ सबा
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<div style="text-align: center;">
एक दम आए इधर, उधर चले
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
दोस्तो देखा तमाशा याँ का बस
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
तुम रहो अब हम तो अपने घर चले
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
आह!बस जी मत जला तब जानिये
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
जब कोई अफ़्सूँ तेरा उस पर चले
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
शमअ की मानिंद हम इस बज़्म में
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
चश्मे-नम आये थे, दामन तर चले 
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
ढूँढते हैं  आपसे  उसको  परे
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सबमें अपनेपन की माया
शैख़ साहिब छोड़ घर बाहर चले
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अपने पन में जीवन आया
 
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हम जहाँ में आये थे तन्हा वले
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साथ अपने अब उसे लेकर चले
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जूँ शरर ऐ हस्ती-ए-बेबूद याँ
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बारे हम भी अपनी बारी भर चले
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साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाव,
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जब तलक बस चल सके साग़र चले
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'दर्द'कुछ मालूम है ये लोग सब
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किस तरफ से आये थे कीधर चले</pre>
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</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया