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"ऐसा ही प्रण / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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सॉनेट और त्रिलोचन : काठी दोनों की है
 
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एक । कठिन प्रकार में बंधी सत्य सरलता ।
 
एक । कठिन प्रकार में बंधी सत्य सरलता ।
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नैसर्गिक स्वर में जब ऎसी गूढ़ अगमता
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स्वयं बोलती हो जो युग की अवास्तविकता
 
स्वयं बोलती हो जो युग की अवास्तविकता
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डूबी हुई खान की निधियां अपनी सरबस !
 
डूबी हुई खान की निधियां अपनी सरबस !
  
लाऊं ऊपर ! अपने अंदर ऎसा ही प्रण
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लाऊं ऊपर ! अपने अंदर ऐसा ही प्रण
  
लिए हुए हैं शायद सानेट और त्रिलोचन ।
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लिए हुए हैं शायद सॉनेट और त्रिलोचन ।
  
  
 
(रचनाकाल :1957)
 
(रचनाकाल :1957)

18:15, 3 जुलाई 2008 के समय का अवतरण

सॉनेट और त्रिलोचन : काठी दोनों की है

एक । कठिन प्रकार में बंधी सत्य सरलता ।


साधे गहरी सांस सहज ही...ऎसा लगता

जैसे पर्वत तोड़ रहा हो कोई निर्भय

सागर-तल में खड़ा अकेला; वज्र हृदयमय ।


नैसर्गिक स्वर में जब ऐसी गूढ़ अगमता

स्वयं बोलती हो जो युग की अवास्तविकता

को मानो ललकार रही हो, तब नि:संशय

अंतस्तल खिल-खिल जाता : चट्टानें भीतर

दुखती-सी कसमस जीवन की ।

-बढ़कर उन पर


सीधी चोट लगाऊं, उनको ढाऊं बरबस

डूबी हुई खान की निधियां अपनी सरबस !

लाऊं ऊपर ! अपने अंदर ऐसा ही प्रण

लिए हुए हैं शायद सॉनेट और त्रिलोचन ।


(रचनाकाल :1957)