(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेंद्र नाथ 'रहबर' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem>आईना सा…) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=राजेंद्र नाथ 'रहबर' | |रचनाकार=राजेंद्र नाथ 'रहबर' | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=याद आऊँगा / राजेंद्र नाथ 'रहबर'; तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त / राजेंद्र नाथ रहबर |
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
− | <poem>आईना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा | + | {{KKVID|v=D4TcQBhChlQ}} |
− | + | <poem> | |
+ | आईना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा | ||
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊंगा | अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊंगा | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 37: | ||
किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊंगा | किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊंगा | ||
− | जब किसी फूल पे | + | जब किसी फूल पे ग़श होती हुई बुलबुल को |
सह्ने-गुल्ज़ार में देखोगे तो याद आऊंगा | सह्ने-गुल्ज़ार में देखोगे तो याद आऊंगा | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
21:50, 26 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
आईना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊंगा
रंग कैसा हो, ये सोचोगे तो याद आऊंगा
जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊंगा
भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊंगा
ध्यान हर हाल में जाये गा मिरी ही जानिब
तुम जो पूजा में भी बैठोगे तो याद आऊंगा
एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊंगा
चांदनी रात में, फूलों की सुहानी रुत में
जब कभी सैर को निकलोगे तो याद आऊंगा
जिन में मिल जाते थे हम तुम कभी आते जाते
जब भी उन गलियों से गुज़रोगे तो याद आऊंगा
याद आऊंगा उदासी की जो रुत आयेगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊंगा
शैल्फ़ में रक्खी हुई अपनी किताबों में से
कोई दीवान उठाओगे तो याद आऊंगा
शम्अ की लौ पे सरे-शाम सुलगते जलते
किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊंगा
जब किसी फूल पे ग़श होती हुई बुलबुल को
सह्ने-गुल्ज़ार में देखोगे तो याद आऊंगा