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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : एक नाम अधरों पर आया<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[कन्हैयालाल नंदन]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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एक नाम अधरों पर आया
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अंग-अंग चन्दन
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वन हो गया।
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बोल हैं कि वेद की ऋचाएँ?
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
साँसों में सूरज उग आए
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
आँखों में ऋतुपति के छन्द
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तैरने लगे
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मन सारा
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नील गगन हो गया।
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गन्ध गुंथी बाहों का घेरा
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<div style="text-align: center;">
जैसे मधुमास का सवेरा
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
फूलों की भाषा में
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</div>
देह बोलने लगी
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पूजा का
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एक जतन हो गया।
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
पानी पर खींचकर लकींरें
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
काट नहीं सकते जंज़ीरें।
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
आसपास
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
अजनबी अंधेरों के डेरे हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
अग्निबिन्दु
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
और सघन हो गया!
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया